भगवान राम चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अवतार लिए. यह कहानी तो सबको पता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान राम माता कौशल्या के गर्भ में कितने दिन रहे. यदि नहीं, तो आज हम इसी प्रसंग की चर्चा करने वाले हैं. गोस्वामी तुलसी दास ने श्रीराम चरित मानस में इस प्रसंग का वर्णन विस्तार से किया है. इसके अलावा महर्षि भारद्वाज और याज्ञवल्क्य मुनि के संवाद में भी इस प्रसंग का जिक्र मिलता है. इसमें कहा गया है कि भगवान राम माता कौशल्या के गर्भ में 12 महीने तक रहे थे.
श्रीरामचरित मानस में तुलसीदास जी लिखते हैं कि चक्रवर्ती महाराज दशरथ को पुत्र ना होने की चिंता माघ महीने में हुई थी. मकर संक्रांति के बाद वह गुरु वशिष्ठ के सामने अपनी चिंता लेकर पहुंचे और जिस समय दशरथ जी यह चिंता जाहिर कर रहे थे, उनके चेहरे पर चिंता का प्रभाव साफ प्रफुस्फुटित हो रहा था. जबकि वशिष्ठ मुस्करा रहे थे. दशरथ जी ने उनसे कारण पूछा तो जवाब में वशिष्ठ उन्हें समझाते हुए कहा कि ब्राह्मण के लिए कर्मकांड कोई श्रेष्ठ काम नहीं है, बावजूद इसके वह 10 पीढियों से रघुवंश में पुरोहित का कम करते आ रहे हैं.
चैत्र शुक्ल नवमीं को हुआ पुत्र कामेष्ठि यज्ञ
वशिष्ठ ने कहा कि वह खुद उन पलों का इंतजार कर रहे हैं, जिसकी चिंता लेकर चक्रवर्ती जी उनके पास आए हैं. वशिष्ठ के ऐसा कहने पर दशरथ जी साफ साफ कहने का आग्रह किया. इसके बाद गुरु वशिष्ठ ने उन्हें बताया कि उनके घर एक नहीं, चार-चार पुत्र आने वाले हैं. यह चारों पुत्र कोई सामान्य इंसान नहीं होंगे, बल्कि खुद भगवान नारायण अपने सभी अंशों के साथ अवतार लेने वाले हैं. उस समय वशिष्ठ की ही सलाह पर महाराज दशरथ ने पुत्र कामेष्ठि यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ की पूर्णाहुति चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुई थी.
वसंत ऋतु में प्रकट हुए भगवान राम
इसी यज्ञ में साक्षात अग्निदेव चरु लेकर प्रकट हुए थे और इसी चरु को ग्रहण करने से राजा दशरथ की तीनों रानियां कौशल्या, केकई और सुमित्रा गर्भवती हुई थीं. मानस में ही कथा आती है कि उसी समय तीनों माताओं के अंक में भगवान अपने अंशों के साथ विराजमान हो गए और उसके बाद तीनों माताओं के सौंदर्य में निखार आ गया. उसी समय से अवध में मंगल ही मंगल होने लगे. कथा आती है कि गर्भ आने के बाद भगवान ने विधि के विधान को भी बदल दिया. कायदे से उन्हें नौ माह के बाद ही धरती पर आ जाना चाहिए था, लेकिन उन्होंने वसंत ऋतु के आने के इंतजार किया.
चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए भगवान
भगवान राम चैत्र महीने में शुक्ल पक्ष की नवमीं तिथि को दोपहर के ठीक 12 बजे अपने चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए. वहीं कुछ ही छणों के अंतर से माता केकई ने भी भरत को जन्म दिया. उसके बाद माता सुमित्रा ने भी लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया. माता के गर्भ से भगवान जन्म नहीं लिए, बल्कि अवतरित हुए थे. इस लिए सामने चतुर्भुज रूप में दुशाला ओढ़े भगवान को देखकर भी माता कौशल्या को पहले भरोसा नहीं हुआ. उस समय भगवान ने उन्हें समझाया.
माता के आग्रह पर की शिशुलीला
बताया कि वह पहली बार मानव रूप में आए हैं और उन्हें इस मृत्युलोक में कुछ चरित्र करने हैं. इसलिए उन्हें इस रूप में आना पड़ा है. हालांकि माता ने आग्रह किया कि वह पुत्र रूप में आए हैं तो उन्हें पहले शिशु लीला तो करनी ही होगी. फिर माता के कहने पर भगवान ने पहले अपने दोनों हाथ हटाए, शिशु रूप लिया, फिर वस्त्र त्यागी. यही नहीं उन्होंने माता के कहने पर रोने का नाटक भी किया. भगवान के इस रूप को देखने के लिए भगवान शंकर भी आए. इतने में माता की तंद्रा टूटी और गोद में बैठे भगवान के रूप को देखकर वह मोहित हो गई.a