राजस्थान के मानगढ़ में आदिवासियों के महाजुटान ने गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक की सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है. यह महाजुटान भील प्रदेश को लेकर हुई थी, जिसमें आदिवासियों ने अपने लिए 4 राज्यों के 49 जिलों को काटकर अलग भील प्रदेश बनाने की मांग रखी है. भील प्रदेश की डिमांड नई नहीं है, लेकिन 108 साल पुरानी यह मांग जिस तरह से बंद बोतल से बाहर निकली है. उससे कहा जा रहा है कि 4 राज्यों के राजनीतिक समीकरण प्रभावित हो सकते हैं.
इतना ही नहीं, मानगढ़ में जुटान के बाद अगर भील प्रदेश की मांग में तेजी आई, तो इसका सीधा असर भारतीय जनता पार्टी पर होगा. क्यों और कैसे, इसे जानते हैं…
पहले भील प्रदेश की डिमांड को समझिए
द्रविड़ का वील शब्द ही भील में तब्दील हुआ है. वील का मतलब होता है- धनुष. भील भारत की सबसे पुरानी जनजाति है और इसकी आबादी पूरे देश में करीब 1 करोड़ है. आजादी से पहले साल 1913 में भील प्रदेश की मांग हुई थी. उस वक्त मानगढ़ में ही समाजिक कार्यकर्ता और खानाबदोश बंजारा जनजाति के गोविंदगिरी ने अपने 1500 समर्थकों के साथ अलग प्रदेश की मांग रखी थी. उस वक्त उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.
भील समुदाय के लोगों का कहना है कि जब तमिल के लिए तमिलनाडु और मराठाओं के लिए महाराष्ट्र राज्य बनाया जा सकता है, तो भीलों के लिए भील प्रदेश क्यों नहीं?
पिछले कुछ सालों से राजस्थान में इसकी मांग फिर से तेज हो गई है. इसकी वजह डूंगरपुर इलाके में भारतीय आदिवासी पार्टी का उदय है. 2024 के लोकसभा चुनाव में इस पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर बांसवाड़ा सीट पर जीत हासिल की.
यह डिमांड बीजेपी की टेंशन कैसे बढ़ाएगी, 3 आंकड़े
1. प्रस्तावित नक्शे के मुताबिक भील प्रदेश में 4 राज्य के 49 जिलों को शामिल करने की मांग की गई है. इनमें राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, उदयपुर, झालवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां और पाली, गुजरात के अरवल्ली, महीसागर, दाहौद, पंचमहल, सूरत, बाड़ोदरा, तापी, नवसारी, छोटा उदयपुर, नर्मदा, सांवरकांठा, बनासकांठा और भरूच, मध्य प्रदेश के इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, देवास, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी और अलीराजपुर और महाराष्ट्र के पालघर, ठाणे, नासिक, धुले, जलगांव, नंदूरबार, बलसाड़ जिले शामिल हैं.
सूरत, इंदौर, कोटा, ठाणे जैसे जिले अपने-अपने राज्य का व्यापारिक केंद्र भी है.
2. भील प्रदेश की मांग आदिवासी संगठनों की ओर से की जा रही है. इन राज्यों में आदिवासी मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है. मसलन मध्य प्रदेश में 21.1 प्रतिशत, गुजरात में 14.8 प्रतिशत, राजस्थान में 13.4 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 9.3 प्रतिशत के आसपास आदिवासी हैं. जो आसानी से विधानसभा और लोकसभा के चुनाव को प्रभावित करते हैं.
3. सीटों की लिहाज से भी इन राज्यों में आदिवासी काफी मजबूत हैं. 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में 45, 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में 14, 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा में 25 और 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में 27 सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है. सरकार बनाने और बिगाड़ने में ये सीटें बड़ी भूमिका निभाती है.
4. जिन राज्यों को काटकर भील प्रदेश बनाने की मांग हो रही है, उन राज्यों में बीजेपी और गठबंधन की सरकार है. गुजरात के जिन 12 जिलों को भील प्रदेश में शामिल करने की मांग की जा रही है. उन जिलों में विधानसभा की 69 सीटें हैं, उनमें से 59 सीट अभी बीजेपी के पास है.
इसी तरह महाराष्ट्र के जिन जिलों को भील प्रदेश में शामिल किए जाने की मांग की जा रही है, वहां पर विधानसभा की 58 सीटें हैं, जिसमें से 42 सीट अभी एनडीए के पास है. महाराष्ट्र में इसी साल और गुजरात में 2027 में विधानसभा के चुनाव होने हैं.
राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी भील प्रदेश की मांग वाले इलाके में बीजेपी का ही दबदबा है. ऐसे में अगर यह डिमांड तुल पकड़ता है तो आने वाले वक्त में बीजेपी की मुश्किलें इन इलाकों में बढ़ सकती है.
भील प्रदेश की मांग पर बीजेपी का क्या कहना है?
भारतीय जनता पार्टी की तरफ से अब तक कोई भी बड़ा नेता ने इस पर बयान नहीं दिया है. हालांकि, राजस्थान सरकार के ट्राइबल अफेयर्स मिनिस्टर बाबू लाल खराड़ी ने जरूर इस मांग को खारिज कर दिया है. खराड़ी का कहना है कि जाति और धर्म के आधार पर प्रदेश की मांग नहीं की जा सकती है.
पत्रकारों से बातचीत में खराड़ी ने कहा है कि विकास के लिए छोटे-छोटे राज्यों की मांग सही है, लेकिन जाति और धर्म के आधार पर नहीं. इससे समाज का ताना-बान बिगड़ जाएगा.