ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंजली के विधायक नवीन पटनायक बीजेडी संसदीय दल के नेता चुने गए हैं. संसदीय दल का नेता एक पद है, जो संबंधित पार्टी के राज्यसभा और लोकसभा सांसदों के नेता होते हैं. हालांकि, नवीन पहले नेता नहीं हैं, जो सांसद न होते हुए भी संसदीय दल के नेता चुने गए हैं. नवीन से पहले हाल ही में ममता बनर्जी संसदीय दल की नेता चुनी गई थीं. ममता बनर्जी बंगाल विधानसभा की सदस्य और राज्य की मुख्यमंत्री हैं.
इन दोनों की नियुक्ति के बाद एक बड़ा सवाल सियासी गलियारों में उठ रहा है. वो ये कि क्या कोई नेता बिना सांसद रहे संसदीय दल का नेता चुना जा सकता है और हां तो आखिर क्यों?
पहले जानिए इस पद के बारे में
संसदीय दल के नेता ही लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी की तरफ से कौन नेता होगा, इसका प्रस्ताव स्पीकर और सभापति को भेजते हैं. पार्टी संसदीय दल के नेता ही डिप्टी लीडर और मुख्य सचेतक का चयन करते हैं और इसका प्रस्ताव लोकसभा/राज्यसभा को भेजा जाता है.
किसी मुद्दे पर पार्टी का क्या स्टैंड होगा, यह भी कई बार संसदीय दल के नेता तय करते हैं और इसी हिसाब से दोनों सदन के पार्टी के नेता रणनीति तैयार करते हैं. यह पद इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पद पर रहने वाले व्यक्ति कब व्हिप लागू हो, यह मुख्य सचेतक से सुनिश्चित कराता है. व्हिप पार्टी को कई बार टूट से बचाता है.
चयन को लेकर क्या है नियम?
संसदीय मामलों के जानकार सत्यव्रत त्रिपाठी के मुताबिक संसदीय दल का नेता एक पद है, ठीक उसी तरह जिस तरह अध्यक्ष का पद है. दोनों पद में बस एक अंतर है. अध्यक्ष कार्यकर्ताओं का नेता होता है, जबकि संसदीय दल का नेता सांसदों के नेता होते हैं. इस पद को एक पावर सेंटर के रूप में भी आप देख सकते हैं.
त्रिपाठी आगे कहते हैं- संसदीय दल के नेता और सदन के नेता में अंतर होता है. सदन का नेता वही हो सकता है, जो संबंधित सदन का सदस्य हो. यानी अगर किसी को पार्टी के लोकसभा का नेता बनना है तो उनके लिए यह जरूरी है कि वे उसके सदस्य हों, लेकिन संसदीय दल के नेता के लिए यह जरूरी नहीं है.
पार्टी संसदीय नेता के चयन को लेकर कोई आधिकारिक गाइड लाइन नहीं है, इसलिए भी पार्टी इसका फायदा उठाती है. संसद में मान्यता प्राप्त दलों तथा समूहों के नेता और मुख्य सचेतक (प्रसुववधाएं) अधिनियम, 1998 के मुताबिक उन्हीं दलों को संसद से सुविधाएं मिल पाएगी, जिनके पास राज्यसभा में कम से कम 15 सांसद और लोकसभा में 30 सांसद हो.
नवीन और ममता क्यों बन गए संसदीय दल के नेता?
नवीन पटनायक हो या ममता बनर्जी, इन नेताओं के संसदीय दल के अध्यक्ष बनने की 3 मुख्य वजहें हैं-
1. छोटी पार्टियों के सामने टूट का डर हमेशा बना रहता है. इसी डर को खत्म करने के लिए नेता खुद इस पद पर काबिज हो जाते हैं. वर्तमान में बीजेडी के पास सिर्फ 8 राज्यसभा सांसद ही हैं और पार्टी राज्य की सत्ता से बाहर है. उसे भी सांसदों के टूटने का डर है. नवीन इसलिए खुद संसदीय दल के नेता बनकर इस टूट की संभावनाओं को खत्म करना चाहते हैं.
2. यह पद पावर सेंटर का पद माना जाता है. कांग्रेस में यह पद सोनिया गांधी और बीजेपी में नरेंद्र मोदी के पास है. क्षेत्रीय पार्टियों के नेता भी यह पद खुद के पास ही रखना चाहते हैं, जिससे पार्टी के भीतर ज्यादा पावर सेंटर न बन जाए.
3. नवीन और ममता के खुद ही संसदीय दल के नेता बनने की एक वजह पार्टी के भीतर नाराजगी को उत्पन्न होने से रोकना भी है. अगर किसी दूसरे नेता को यह पद दिया जाता है तो पार्टी में कलह हो सकती है, लेकिन नवीन और ममता का विरोध उनकी पार्टी में कोई भी नेता शायद ही कर पाए.