तारीख 21 जुलाई साल 1993, आज से पूरे 31 साल पहले कोलकाता के इतिहास में एक ऐसा दिन दर्ज है, जिसमें 13 मासूमों की जान चली गई थी. आज के ही दिन को पूरा पश्चिम बंगाल शहीद दिवस के नाम से मनाता है. देश में समय-समय पर बदलाव की मांग उठी है, समय-समय पर बदलाव की मांग करने के लिए आंदोलन हुए हैं. ऐसा ही एक आंदोलन साल 1993 में उस समय की युवा कांग्रेस ने किया था. इस आंदोलन का नेतृत्व वर्तमान सीएम ममता बनर्जी कर रही थी.
साल 1991 में पश्चिम बंगाल में कम्यूनिस्ट लेफ्ट फ्रंट ने भारी बहुमत से सरकार बनाई थी और ज्योति बसु राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. कम्यूनिस्ट लेफ्ट फ्रंट के भारी वोटों से जीतने के बाद विपक्ष ने चुनाव में धोखाधड़ी का आरोप लगाया था. जिसने राज्य में एक नए आंदोलन को जन्म दिया था, जिसके बाद विपक्ष ने वोटर आईडी कार्ड को वोट डालने के लिए अनिवार्य करने की मांग शुरू कर दी थी.
ममता बनर्जी कर रही थी आंदोलन का नेतृत्व
उस समय ममता बनर्जी राजनीति में पैर जमा रही थी और वो युवा कांग्रेस की अध्यक्ष थीं. 21 जुलाई 1993 को ममता बनर्जी ही इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थी और राइटर्स बिल्डिंग तक मार्च करने का इरादा किया गया था. इस आंदोलन में लोगों की मांग थी कि स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के लिए वोटर आईडी को अनिवार्य किया जाए.
यह मार्च 21 जुलाई को मजबूत इरादों के साथ राइटर्स बिल्डिंग की तरफ चल पड़ा था. सुबह 11 बजे के आसपास, बिल्डिंग तक पहुंचने से महज एक किलोमीटर पहले, मेयो रोड पर मेट्रो सिनेमा और एस्प्लेनेड में डोरिना रोड क्रॉसिंग के पास, राज्य पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोक दिया. पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने के लिए गोलियां बरसानी शुरू कर दी, जिसके बाद हालात बिगड़ गए. इस गोलीबारी में 13 लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए.
पुलिस कमिश्नर ने क्या कहा था
इस घटना के बाद उस समय के शहर के पुलिस कमिश्नर तुषार तालुकदार ने कहा कि पुलिस को पहले से ही आशंका थी कि राइटर्स बिल्डिंग और राजभवन तक मार्च किया जा सकता है, जिसके चलते पुलिस की टुकड़ी को पहले से ही तैनात कर दिया गया था, साथ ही सेक्शन 144 लागू किया गया था. घटना के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालुकदार ने दावा किया था कि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि गोलीबारी शुरू कर दी गई है. तालुकदार ने कहा कि एक जूनियर ने गोलीबारी शुरू कर दी थी. तत्काल केंद्रीय गृह मंत्री एस.बी. चव्हाण, जो घटना के बाद कलकत्ता पहुंचे थे, उन्होंने राज्य सरकार को घटना की न्यायिक जांच का आदेश देने की सलाह दी थी. हालांकि, मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने किसी जांच का आदेश नहीं दिया था.
ममता बनर्जी के राजनीतिक सफर ने लिया नया मोड़
इस आंदोलन का नेतृत्व करने वाली ममता बनर्जी को भी पुलिस गोलीबारी में काफी चोट आई थीं, लेकिन यहीं वो दिन था जहां से ममता बनर्जी के राजनीतिक सफर ने नया मोड़ लिया. उन्हें जनता की हमदर्दी और समर्थन दोनों मिला. ममता बनर्जी पहले से ही राज्य की राजनीति में एक उभरती हुई हस्ती थीं, लेकिन अब जनता के बीच उन का सम्मान और बढ़ गया. आने वाले वर्षों में, घटना की 21 जुलाई की सालगिरह पार्टी की सबसे बड़ी वार्षिक सार्वजनिक रैली बन गई. साल 1997 में ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का गठन किया, जिसके बाद पार्टी ने साल 2011 में राज्य में पहली बार सरकार बनाई.
“जलियांवाला बाग नरसंहार से भी बदतर”
जिसके बाद हर साल 21 जुलाई को कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों ही पश्चिम बंगाल में “शहीद दिवस” के रूप में इस दिन को मनाते हैं. सत्ता में आने के बाद टीएमसी ने इस घटना की जांच के लिए एक कमेटी बनाई थी. टीएमसी ने ओडिशा हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, (रिटायर) सुशांतो चट्टोपाध्याय के नेतृत्व में आयोग का गठन किया था. न्यायमूर्ति चटर्जी ने साल 2014 में रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, “आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि यह मामला जलियांवाला बाग नरसंहार से भी बदतर है.”