सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को चुनाव चिन्ह के रूप में ‘शरीर के अंग’ जैसे निशान पर अपना फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका के जरिए चुनाव चिन्ह के रूप में ‘शरीर के अंग’ को जारी नहीं करने की मांग की गई थी. वहीं, इस पर फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने इस मांग को लेकर दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है.
इससे पहले भी चुनाव आयोग के समक्ष इस तरह के चुनाव चिन्ह या पार्टी निशान को रद्द करने की मांग को लेकर शिकायत की गई थी. शिकायत में कहा गया था कि नेता चुनाव के दौरान इस तरह के पार्टी चिन्हों का दुरुपयोग करते हैं. उस समय इस मामले की सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग के उप चुनाव आयुक्त चंद्र भूषण कुमार ने खुद इस बात को माना था. अब देश के मुख्य न्यायाधीश ने इसे खारिज कर दिया है.
इसका इरादा सिर्फ ‘हाथ’ चिन्ह को रोकना लगता है: CJI
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में चुनाव चिन्ह के रूप में ‘शरीर के अंग’ को नहीं जारी करने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी. साथ ही यह भी मांग की गई थी कि इस तरह के निशानों पर प्रतिबंध लगाए जाए. वहीं, अदालत ने मांग को लेकर दायर जनहित याचिका खारिज कर दिया.
इस जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई की. सीजेआई ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह कुछ भी नहीं है, हम याचिका को खारिज कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस जनहित याचिका का इरादा सिर्फ ‘हाथ’ चिन्ह को रोकना लगता है.
राजनीतिक दलों में सिर्फ कांग्रेस के पास ऐसे चिन्ह
इससे पहले चुनाव आयोग को की गई शिकायत में कहा गया था कि यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 130 का उल्लंघन है. इस धारा के तहत चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद मतदान केंद्र के 100 मीटर के भीतर किसी भी पार्टी का चिन्ह ले जाना प्रतिबंधित है. जबकि कांग्रेस ‘शरीर के अंग’ पंजे के चुनाव चिन्ह का दुरुपयोग करती है.
साथ ही यह भी कहा गया कि देश में छह राष्ट्रीय और 75 राज्य स्तरीय राजनीतिक दल हैं. लेकिन कांग्रेस के अलावा किसी भी राजनीतिक दल के पास ‘शरीर के अंग’ वाला चुनाव चिन्ह नहीं है. साथ ही, इस समय चुनाव आयोग के पास 75 ऐसे चुनाव चिन्ह खाली पड़े हैं, लेकिन उनमें से किसी पर भी ‘शरीर के अंग’ वाला चुनाव चिन्ह नहीं है.