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क्या कोई भी भारत बंद का ऐलान कर सकता है, कब-कब होती है कार्रवाई… जानें क्या कहता है कानून

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दलित और आदिवासी संगठनों ने बुधवार को भारत बंद का ऐलान किया. यह भारत बंद सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति एवं जनजाति आरक्षण में क्रीमीलेयर और कोटा के भीतर कोटा लागू करने के फैसले के खिलाफ किया गया है. नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशंस नाम के संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दलित और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ बताया और केंद्र सरकार से इसे रद्द करने की मांग की है.

ऐसे में सवाल है कि किसे भारत बंद करने का अधिकार है, कब-कब ऐसे मामलों में सजा हो सकती है और इस पर क्या कहता है कानून?

क्या कोई भी कर सकता है भारत बंद का ऐलान?

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भारत लोकतांत्रिक देश है और यहां सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है. भारतीय संविधान के आर्टिकल 19 के तहत नागरिकों को कई अधिकार मिले हैं. आर्टिकल 19 (ए) भारतीयों को भाषण देने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. वहीं, सेक्शन-बी के तहत लोग शांतिपूर्वक बिना किसी हथियारों के कहीं पर इकट्ठा हो सकते हैं. इस तरह संगठन देश में भारत बंद का ऐलान कर सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आशीष पांडे कहते हैं, अगर देश में शांतिपूर्वक तरीके से भारत बंद किया जाता है तो किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाती. ऐसा इसलिए है क्योंकि नागरिकों को ऐसे अधिकार दिए गए हैं. कार्रवाई तब होती है जब भारत बंद या प्रदर्शन हिंसक होने लगता है. प्रदर्शन करने वाले दूसरे लोगों की प्रॉपर्टी को जलाने या नुकसान पहुंचाने लगते हैं. लोगों को डराते और धमकाते हैं. जबरदस्ती दुकान को बंद कराते हैं.

प्रदर्शन पर कानून क्या कहता है?

भारतीय संविधान में शांतिपूर्वक प्रदर्शनों की अनुमति दी गई है लेकिन उसमें हथियार को शामिल नहीं किया जा सकता. कार्रवाई तब शुरू होती है जब ये प्रदर्शन हिंसक होने लगते हैं. हिंसा के अलग-अलग मामलों में अलग-अलग धाराओं के तहत केस दर्ज किया जाता है. इनकी सजा भी अलग-अलग होती है. जैसे- भारत बंद में शामिल प्रदर्शनकारी किसी की प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाते हैं तो ऐसे मामले में प्रिवेंशन ऑफ डैमेज ऑफ पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट 1984 के तहत कार्रवाई की जाती है.

इस कानून के मुताबिक कोई सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाएगा तो उसे पांच साल तक की कैद और जुर्माने से दंडित किया जाएगा.प्रदर्शन हिंसक होने पर सबसे ज्यादा इसके मामले सामने आते हैं.

सप्रीम कोर्ट ने इस कानून को और बेहतर बनाने के लिए स्वत: संज्ञान लिया और 2007 में इसके लिए कमेटी बनाई. पहली, जस्टिस थॉमस कमेटी और दूसरी नरीमन कमेटी, लेकिन मामला बहुत प्रभावी नहीं रहा. इसके बाद में दंगे और प्रदर्शन की संख्या तेजी से बढ़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल भी बनाने की बात कही थी ताकि पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने वाले उपद्रवियों या उस प्रदर्शन के नेता से वसूली की जा सके. हालांकि यह प्रक्रिया अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाई.

इसी तरह जब उत्तर प्रदेश में CAA को लेकर प्रदर्शन हुए थे तो योगी सरकार इस पर कानून लाई थी. इसका नाम था उत्तर प्रदेश कम्पनसेशन फॉर डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट 2020. कानून में बताया गया था कि अगर दंगाइओं की वजह से प्रॉपर्टी को नुकसान होता है तो पब्लिक प्रॉपर्टी की भरपाई भी उनसे ही कराई जाएगी. इस तरह लोकतांत्रिक देश के नाते शांतिपूर्वक प्रदर्शन और भारत बंद तो किया जा सकता है, लेकिन इनके हिंसक होने पर कार्रवाई का प्रावधान है.

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