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BJP का मिशन कश्मीर: अपने किनारे, बाहरियों पर दांव, कंफ्यूजन या रणनीति?

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जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अभी तक अपने 45 उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. बीजेपी ने अपने दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर दूसरे दल से आए नेताओं को खास तवज्जो दी है. बीजेपी जम्मू रीजन में पूरा दमखम लगाएगी और कश्मीर घाटी को लेकर इस बार अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए मुस्लिमों पर दांव खेला है. ऐसे में कई जगहों पर पार्टी को नेताओं के विरोध भी झेलने पड़ रहे हैं, लेकिन पार्टी डैमेज कन्ट्रोल में जुट गई है. बीजेपी की बदली राजनीति मिशन कश्मीर में मददगार साबित होगी या फिर सियासी कन्फ्यूजन का खामियाजा भुगतना पड़ेगा?

बीजेपी ने सोमवार को पहले 44 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की थी, लेकिन कुछ देर के बाद ही उसे वापस ले लिया था. इसके बाद बीजेपी ने उसी दिन पहले 15 उम्मीदवारों के टिकट की सूची जारी की और उसके बाद एक सिंगल कैंडिटेट के नाम का ऐलान किया. इसके बाद दूसरे दिन मंगलवार को 29 उम्मीदवारों की तीसरी सूची जारी की. इस तरह राज्य की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 45 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है, लेकिन लिस्ट आने के बाद पार्टी के भीतर सियासी बवाल मचा हुआ है.

टिकटों को लेकर तनातनी

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जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. धारा 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार हो रहे चुनाव को बीजेपी हरहाल में जीतना चाहती है, लेकिन टिकट वितरण को लेकर अंतर्कलह मच गई है. बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं के टिकट कटने और सीटों पर उम्मीदवार बदले जाने से कार्यकर्ता नाराज हैं. टिकटों को लेकर तनातनी इतनी बढ़ गई है कि कार्यकर्ता सामूहिक इस्तीफे की धमकी तक दे रहे हैं.

इन नेताओं का कटा टिकट

बीजेपी की सूची में 2014 के विधानसभा चुनाव में विधायक बनने वाले 11 नेताओं के नाम शामिल नहीं हैं. बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में छह ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जो हाल ही में अन्य दलों से आए हैं. बीजेपी के जिन पूर्व विधायकों और पूर्व मंत्रियों का टिकट कटा है, उनके समर्थक खुलकर सड़क पर उतर गए हैं. पूर्व उपमुख्यमंत्री बीजेपी के वरिष्ठ नेता निर्मल सिंह, पूर्व मंत्री अजय नंदा, पूर्व मंत्री अब्दुल गनी कोहली, पूर्व मंत्री रहे बाली भगत, पूर्व मंत्री श्याम चौधरी और पूर्व विधायक चौधरी सुखनंदन जैसे दिग्गज नेता का टिकट काट दिया है.

बीजेपी में उठे विरोध के सुर

राजनीतिक विश्वलेषकों की माने तो बीजेपी अपने अन्य वरिष्ठ नेताओं को उम्मीदवारों की सूची से बाहर रखना जम्मू-कश्मीर में जमीनी भावना के बारे में पार्टी के भीतर सियासी बेचैनी को दर्शाता है. इसके अलावा बीजेपी में जिस तरह विरोध के सुर उठ रहे हैं, उसके चलते पार्टी नेतृत्व सचेत हो गए हैं. खासकर माता वैष्णव देवी सीट पर बीजेपी ने रोहित दूबे को पहले प्रत्याशी बनाया था, लेकिन बाद में बलदेव राज शर्मा को टिकट दे दिया. इसके चलते बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने उम्मीदवार बदलने को लेकर बगावत का झंडा उठा लिया है. ऐसे में डैमेज कन्ट्रोल का जिम्मा बीजेपी ने राम माधव को सौंपा है, जिन्होंने नाराज नेताओं को मनाने में जुटे हैं

राजनीति के जानकार राम माधव

संघ से बीजेपी में आए राम माधव को जम्मू-कश्मीर की राजनीति का जानकार माना जाता है. इसके चलते ही उन्हें राज्य का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है. राम माधव ही थे 2014 में जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी को एक साथ लाकर गठबंधन की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. ऐसे में अब फिर से उन्हें मिशन-कश्मीर का जिम्मा सौंपा गया है. राम माधव के ऊपर सबसे अहम जिम्मेदारी फिलहाल टिकट के कटने से नाराज नेताओं को मनाने की है, जिनके साथ वो मुलाकात कर उनकी नाराजगी को दूर करने की कोशिश में जुटे हैं.

दूसरे दल के नेताओं पर खेला दांव

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दूसरे दलों से आए नेताओं पर दांव खेला है. दूसरे दलों से आए ये नेता बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा हैं, जिसके तहत वह जम्मू के हिंदू गढ़ माने जाने वाले क्षेत्र में अपनी सियासी जमीन बचाए रखनी की है. बीजेपी ने आधा दर्जन सीटों पर दूसरे दल से आए नेताओं को टिकट दिया है, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष देवेंद्र राणा और पीडीपी के पूर्व नेता चौधरी जुल्फिकार, कांग्रेस के पूर्व नेता श्याम लाल शर्मा, नेशनल कॉफ्रेंस से आए सुरजीत सिंह सलाथिया जैसे नाम शामिल हैं.

किसको कहां से मिला टिकट

पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला के पूर्व सहयोगी और मित्र देवेंद्र राणा नागरोटा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि जुल्फिकार राजौरी जिले के बुधल के अपने आदिवासी गढ़ से अपने भतीजे और नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता जावेद चौधरी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने श्याम लाल शर्मा को जम्मू उत्तर से टिकट दिया है. इसके अलावा बीजेपी ने सुरजीत सिंह सलाथिया को सांबा से प्रत्याशी बनाया है. जम्मूकश्मीर पुलिस के पूर्व एसएसपी मोहन लाल भगत का भी नाम शामिल है, जो कुछ दिन पहले ही पार्टी में शामिल हुए थे. उन्हें जम्मू संभाग में आरक्षित अखनूर निर्वाचन क्षेत्र से टिकट मिला है.

बीजेपी के सामने है ये टेंशन

बीजेपी ने भले ही दूसरे दलों के दिग्गज नेताओं को अपने साथ लेकर चुनावी मैदान में उतार दिया है, लेकिन इसके चलते अंदरूनी बनाम बाहरी की समस्या पैदा हो गई है. बीजेपी के इन सीटों पर अपने नेताओं के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को भी साधकर रखने ही नहीं बल्कि चुनाव में उन्हें एक्टिव रखने की भी टेंशन है. इसके अलावा बीजेपी ने जिन सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारने का दांव चला है, उन सीटों पर हिंदू वोटों को साधकर रखने की चुनौती खड़ी हो गई है.

कश्मीर में मुस्लिम पर खेला दांव

बीजेपी कश्मीर घाटी की आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इनमें से कोकरनाग (एसटी) से रोशन हुसैन गुज्जर, कश्मीर घाटी की शंगस-अनंतनाग पूर्व से कश्मीरी पंडित वीर सराफ, पांपोर से इंजीनियर सैयद शौकत गयूर, राजपोरा से अर्शीद भट्ट, शोपियां से जावेद अहमद कादरी, अनंतनाग पश्चिम से मो. रफीक वानी, अनंतनाग से एडवोकेट सैयद वजाहत, श्रीगुफवाड़ा बिजबेहरा से सोफी यूसुफ को प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी ने मुस्लिम कैंडिडेट उतारकर जरूर कांग्रेस और एनसी के लिए टेंशन बढ़ाई है, लेकिन अपने लिए भी जोखिम भरा कदम उठाया है.

कश्मीर में खाता नहीं खोल पाई थी

परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर की सियासी तस्वीर बदल गई है. जम्मू रीजन में 6 सीटें बढ़ी हैं तो कश्मीर में सिर्फ एक सीट का इजाफा हुआ है. जम्मू रीजन में सीटें अब 37 से बढ़कर 43 हो गई है जबकि कश्मीर रीजन में 46 सीटों से बढ़कर 47 हो गई हैं. बीजेपी का सियासी आधार जम्मू रीजन की तुलना में कश्मीर रीजन में बहुत ज्यादा नहीं है. जम्मू में बीजेपी 2014 में विपक्ष का सफाया कर दिया था, लेकिन कश्मीर क्षेत्र वाले इलाके में खाता नहीं खोल सकी.

कश्मीर को फहत करने की रणनीति

कश्मीर के रीजन में हिंदू वोटों का प्रभाव बहुत नहीं है. लिहाजा इस बार बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली है. कश्मीर घाटी में मुस्लिम उम्मीदवारों पर भी दांव लगाया गया है, क्योंकि इन सीटों पर मुस्लिम वोटर ही निर्णायक भूमिका में है. बीजेपी ने कश्मीर पंचायत चुनाव में भी मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिमों पर दांव खेला था. इसमें पार्टी कुछ हद तक कामयाब रही थी. इसलिए विधानसभा चुनाव में भी इस स्ट्रैटजी पर काम किया जा रहा है. ऐसे में बीजेपी ने भले ही सियासी कन्फ्यूजन बनाया है, लेकिन कश्मीर को फतह करने की रणनीति मानी जा रही है.

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