नीतीश कुमार की पार्टी में इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. मंत्री विजेंद्र यादव के बाद अशोक चौधरी की नाराजगी खुलकर सामने आ गई है. चौधरी ने तो नीतीश कुमार पर ही निशाना साध दिया. दिलचस्प बात है कि अशोक चौधरी और विजेंद्र यादव दोनों नीतीश कुमार के किचन कैबिनेट के सदस्य माने जाते हैं.
ऐसे में सियासी गलियारों में सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या वजह है कि नीतीश के किचन कैबिनेट के सदस्य ही पार्टी से नाराज चल रहे हैं. वो भी तब, जब बिहार में विधानसभा के चुनाव होने में एक साल का वक्त बचा है.
नीतीश के किचन कैबिनेट में कौन-कौन?
1970 के दशक में भारत के सियासी गलियारों में किचन कैबिनेट का शब्द सुर्खियों में आया. उस वक्त इंदिरा गांधी के करीबी नेताओं के लिए यह शब्द प्रयोग में लाया गया था. किचन कैबिनेट का मतलब है कि एक छोटी टीम, जो डिसिजन मेकिंग का काम करे.
1. ललन सिंह- जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष ललन सिंह नीतीश के किचन कैबिनेट के प्रमुख सदस्य हैं. सिंह जेडीयू कोटे से अभी केंद्र में मंत्री भी हैं. ललन सिंह को नीतीश कुमार का करीबी नेता माना जाता है. दोनों छात्र राजनीति से ही एक-दूसरे के साथ हैं.
ललन सिंह को नीतीश कुमार का संकटमोचक भी कहा जाता है. जेडीयू जब-जब संकट में आती है तो नीतीश ललन को ही आगे करते हैं. वर्तमान में जेडीयू के भीतर ललन दूसरे नंबर के नेता माने जाते हैं.
2. संजय कुमार झा- बिहार सरकार के पूर्व मंत्री और जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा भी नीतीश किचन कैबिनेट के अहम सदस्य हैं. संजय झा जेडीयू में बीजेपी के जरिए आए. शुरुआत में वे नीतीश कुमार का ब्लॉग मैनेजमेंट करते थे.
नीतीश ने उन्हें फिर विधानपरिषद भेजा और खुद की सरकार में मंत्री बनवाया. 2020 के चुनाव में जेडीयू के कैंपेन की जिम्मेदारी संजय झा पर ही थी. संजय जब मंत्री थे, तब उन्हें अक्सर नीतीश कुमार के साथ देखा जाता था.
3. विजय चौधरी- बिहार में जेडीयू के अध्यक्ष रहे विजय चौधरी भी नीतीश किचन कैबिनेट के सदस्य हैं. चौधरी वर्तमान में बिहार सरकार में मंत्री हैं. उन्हें नीतीश के साथ अक्सर देखा जाता है. सरायरंजन से विधायक विजय चौधरी ने करियर की शुरुआत कांग्रेस से की थी.
विजय चौधरी 2015 के बाद से सभी सरकार में मंत्री रहे हैं. इस दौरान उनके पास वित्त, शिक्षा और जल संसाधन जैसे बड़े विभाग रहे हैं.
4. विजेंद्र यादव- खांटी समाजवादी नेता विजेंद्र यादव को भी नीतीश किचन कैबिनेट का सदस्य माना जाता है. विजेंद्र लंबे वक्ते से नीतीश कुमार के साथ जुड़े हुए हैं. वे बिहार में उर्जा और योजना विभाग के मंत्री रहे हैं.
सुपौल से आने वाले विजेंद्र यादव 8 बार के विधायक हैं. कहा जाता है कि विजेंद्र की वजह से ही सुपौल जेडीयू का गढ़ बना हुआ है.
5. अशोक चौधरी- 2017 के बाद अशोक चौधरी भी नीतीश के किचन कैबिनेट में शामिल हो गए हैं. अक्सर सार्वजनिक कार्यक्रमों में नीतीश के साथ चौधरी को देखा जाता है. चौधरी वर्तमान में नीतीश सरकार में मंत्री भी हैं.
जेडीयू में आने से पहले चौधरी बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष थे. चौधरी को राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिता महावीर चौधरी कांग्रेस के दिग्गज नेता थे.
किचन कैबिनेट में क्यों मची है हलचल?
विजेंद्र यादव और फिर अशोक चौधरी की नाराजगी से सवाल उठ रहा है कि आखिर नीतीश कुमार के किचन कैबिनेट में हलचल क्यों मची है? जेडीयू से जुड़े नेताओं के मुताबिक दोनों के केस अलग-अलग है. मसलन, अशोक चौधरी लोकसभा चुनाव के बाद से ही साइड लाइन चल रहे हैं.
दरअसल, लोकसभा चुनाव में चौधरी ने अपनी बेटी शांभवी को जेडीयू के बदले लोजपा (आर) से टिकट दिलवा दिया. कहा जाता है कि इसके बाद से ही जेडीयू के हाईकमान की नजरों में वे खटक गए.
मंत्रियों के जिले बंटवारे में इसका असर भी देखने को मिला. लोकसभा चुनाव से पहले तक अशोक चौधरी के पास जमुई और रोहतास जिले का प्रभार था, लेकिन अब उन्हें सीतामढ़ी और जहानाबाद का प्रभारी मंत्री बनाया गया है. जमुई अशोक चौधरी का सियासी गढ़ माना जाता है.
इतना ही नहीं, हाल में आईएएस की नौकरी छोड़ राजनीति में मनीष वर्मा ने भी चौधरी की मुश्किलें बढ़ा दी है. कहा जा रहा है कि नए सदस्य के तौर पर नीतीश किचन कैबिनेट में वर्मा की एंट्री हो गई है.
बात विजेंद्र यादव की करें तो आरजेडी से गठबंधन टूटने के बाद से ही विजेंद्र यादव असहज बताए जा रहे हैं. हाल ही में जेडीयू के कार्यालय पर लगे पोस्टरों में अपनी तस्वीर न देख वे नाराज हो गए थे.
कहा जाता है कि 2022 में जेडीयू और आरजेडी को साथ लाने में विजेंद्र यादव ने बड़ी भूमिका निभाई थी.