जम्मू-कश्मीर में 6 साल बाद नई सरकार का गठन हो गया है. अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद उमर अब्दुल्ला केंद्र शासित प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने हैं. इस बीच उमर सरकार में कांग्रेस शामिल नहीं हुई है, बल्कि बाहर से समर्थन करने का फैसला किया है. इसके चलते कांग्रेस कोटे से किसी भी नेता ने मंत्री पद की शपथ नहीं ली. कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन नतीजों के बाद से ही दोनों के बीच सियासी तालमेल नहीं दिख रहा.
नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और सीपीआई (एम) ने मिलकर जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव लड़ा था. नेशनल कॉन्फ्रेंस 42 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और कांग्रेस सिर्फ 6 सीटें जीतने में कामयाब रही. जम्मू-कश्मीर में बहुमत का आंकड़ा 46 विधायकों का है. कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या है.
निर्दलीय विधायकों ने समर्थन दिया
चार निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिलने के बाद सियासी समीकरण बदल गए और कांग्रेस पर निर्भर रहने वाली उमर अब्दुल्ला अब सरकार बनाने के लिए पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गए हैं. जम्मू-कश्मीर में आधा दर्जन सीटें जीतकर भी कांग्रेस की स्थिति खास नहीं रह गई है. जम्मू-कश्मीर में निर्दलीय विधायकों के नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन देने से कांग्रेस के लिए अपने विधायकों को उमर सरकार में सही और उचित स्थान दिलाना मुश्किल हो गया है. सूत्रों के अनुसार, नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से उमर अब्दुल्ला सरकार में कांग्रेस को सिर्फ एक मंत्री पद का प्रस्ताव दिया गया है.
जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के नेताओं को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से बात करने का समय नहीं मिला, इसलिए फिलहाल कांग्रेस का कोई भी विधायक मंत्री पद की शपथ नहीं लेंगे.
कांग्रेस के सामने है चुनौती
राहुल गांधी के साथ जम्मू-कश्मीर के नेताओं की बैठक के बाद ही सरकार में शामिल न होने का औपचारिक फैसला लिया जाएगा. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा और डूरू सीट से जीए मीर जैसे पार्टी के दिग्गज नेता विधायक बनकर आए हैं. ऐसे में कांग्रेस केवल एक मंत्री पद से सहमत नहीं है. कांग्रेस के सामने चुनौती यह है कि वह अपने किस नेता को मंत्री बनाए और किसे न बनाए. ऐसे में कांग्रेस सरकार में शामिल होने के बजाय बाहर से समर्थन का रास्ता अपना सकती है. जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के साथ यह स्थिति तब बनी जब विधानसभा चुनाव जीतकर आए चार निर्दलीय विधायकों ने उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन देने का ऐलान किया.
वहीं जिन निर्दलीयों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन दिया है, उनका राजनीतिक नाता अब्दुल्ला की पार्टी से रहा है. दो निर्दलीय विधायक ऐसे हैं, जो पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस में ही थे, लेकिन सीटों के बंटवारे में उनकी विधानसभा कांग्रेस के कोटे में चली गई, तो वे बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़े थे.
कश्मीर मे रहा कांग्रेस का दबदबा
इंदरवाल सीट से जीते प्यारे लाल शर्मा और सूरनकोट से चुनकर आए चौधरी अकरम का नेशनल कॉन्फ्रेंस से पुराना नाता है. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने ज्यादातर सीटें घाटी इलाके में जीती हैं, जबकि कांग्रेस के सभी 6 विधायक कश्मीर क्षेत्र से जीते हैं. ऐसे में उमर अब्दुल्ला कश्मीर के साथ-साथ जम्मू क्षेत्र का राजनीतिक संतुलन बनाने के लिए कांग्रेस को सिर्फ एक मंत्री पद का प्रस्ताव दे रहे हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन करने वाले निर्दलीय विधायक जम्मू क्षेत्र से हैं.इसलिए जम्मू के लिए उमर अब्दुल्ला को कांग्रेस के छह विधायकों से ज्यादा चार निर्दलीय विधायकों का समर्थन महत्वपूर्ण लगता है. जम्मू-कश्मीर की 90 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 46 है.
NC नहीं देगी कांग्रेस को ज्यादा स्पेस
इंडिया गठबंधन के तहत नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 42 सीटें जीती हैं, कांग्रेस 6 सीटें जीती और सीपीआई (एम) को 1 सीट मिली है. इसके अलावा, चार निर्दलीयों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस का समर्थन कर दिया है. इस प्रकार उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में बनने वाली सरकार को 53 विधायकों का समर्थन हासिल है. उमर अब्दुल्ला इस बार दो विधानसभा सीटों गांदरबल और बडगाम से जीते हैं, ऐसे में वह एक सीट से इस्तीफा दे सकते हैं. इसके बाद भी उमर अब्दुल्ला के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या है. कांग्रेस के समर्थन देने या न देने से नेशनल कॉन्फ्रेंस पर कोई सियासी प्रभाव नहीं पड़ने वाला है.
यही कारण है कि उमर अब्दुल्ला कांग्रेस को लेकर आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं और कैबिनेट में भी कांग्रेस को बहुत ज्यादा राजनीतिक स्पेस देने के मूड में नहीं हैं. उन्हें लगता है कि कांग्रेस जम्मू क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी. अगर कांग्रेस ने जम्मू में मेहनत की होती, तो नतीजे और भी अलग होते.
कांग्रेस नहीं करेगी NC से मोलभाव
विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच यह तय हुआ था कि कांग्रेस जम्मू क्षेत्र की जिम्मेदारी संभालेगी और नेशनल कॉन्फ्रेंस कश्मीर घाटी की चुनावी चुनौती से निपटेगी. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने तो अपना कमिटमेंट पूरा किया, यहां तक कि जम्मू में भी कुछ सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस का जम्मू में प्रदर्शन निराशाजनक रहा. उसे जो 6 सीटें मिलीं, वे भी घाटी में ही मिलीं. कांग्रेस उमर अब्दुल्ला सरकार में अपने विधायकों के लिए बेहतर मोलभाव करने की स्थिति में नहीं है.
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत तय नियम के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती.
क्या होगी नई कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या?
केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री समेत कुल 10 मंत्री बनाए जा सकते हैं. ऐसे में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस को केवल एक मंत्री पद का प्रस्ताव दिया है, जिसे कांग्रेस अपने आत्म-सम्मान से जोड़ रही है. जम्मू-कश्मीर में 42 सीटें हासिल करने वाले उमर अब्दुल्ला ने 4 निर्दलीयों का समर्थन हासिल करके सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत जुटा लिया है. अब कांग्रेस का समर्थन नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए महज औपचारिकता भर रह गया है. चुनाव नतीजों ने कांग्रेस के राजनीतिक मोलभाव पर असर डाला है. उमर सरकार में जो स्थिति कांग्रेस चाहती थी, उसे 4 निर्दलीयों ने चुनौती दे दी है.