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152 साल का इतिहास, बदल जाएगा पूरा चक्र…क्यों खास है इस बार की जनगणना?

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देश में अगले साल से जनगणना की शुरुआत होने जा रही है. सरकार का ये काम 2026 तक चलेगा. देश में पहली बार जनगणना 1872 में हुई थी, लेकिन 2021 में इसपर ब्रेक लग गया था. कोविड महामारी के कारण इसे टालना पड़ा था. अब जनगणना का चक्र भी बदलेगा. हर दस साल में होने वाली जनगणना अब अगली बार 2035 में होगी. इस बार की जनगणना कई मायनों में खास होने वाली है. खास इस वजह से क्योंकि ये ऐसे समय हो रही है जब भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होने का गौरव हासिल किया है. ये रिकॉर्ड अबतक चीन के नाम था.

इन वजहों से खास होगी इस बार की जनगणना…

अभी तक हर दस साल में होने वाली जनगणना दशक के शुरुआत में होती आई थी. जैसे 1991, 2001, 2011, लेकिन अब 2025 के बाद अगली जनगणना 2035, 2045, 2055 इस तरह होगी. लोकसभा सीटों का परिसीमन जनगणना पूरी होने के बाद शुरू होगा. परिसीमन प्रक्रिया 2028 तक पूरी होने की संभावना है.

कई विपक्षी दलों की तरफ से जातिगत जनगणना की मांग भी हो रही है, लेकिन सरकार ने अभी इस बारे में फैसला नहीं किया है. जनगणना में धर्म और वर्ग पूछा जाता है. सामान्य, अनुसूचित जाति और जनजाति की गणना होती है. इस बार लोगों से यह भी पूछा जा सकता है कि वे किस संप्रदाय के अनुयायी हैं.

उदाहरण के तौर पर कर्नाटक में सामान्य वर्ग में आने वाले लिंगायत स्वयं को अलग संप्रदाय के मानते हैं. इसी तरह अनुसूचित जाति में वाल्मीकि, रविदासी, जैसे अलग-अलग संप्रदाय हैं. यानी धर्म, वर्ग के साथ संप्रदाय के आधार पर भी जनगणना की मांग पर सरकार विचार कर रही है.

जातिगत जनगणना की मांग

जनगणना के प्रक्रिया के दो चरण हैं. मकानों की लिस्टिंग और वास्तविक गणना. 2011 में 640 जिले, 7,935 कस्बे और 600,000 से अधिक गांव शामिल थे. प्रक्रिया का डेटा मार्च 2011 को प्रकाशित किया गया था. इस बार जनगणना लोकसभा परिसीमन का आधार बनेगी. परिसीमन की प्रक्रिया 2002 से रुकी हुई थी.

जनगणना ऐसे समय होगी जब देश के कई राजनीतिक दल जाति आधारित गणना की मांग कर रहे हैं. बिहार, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों ने जाति सर्वेक्षण पूरे भी कर लिए हैं और तेलंगाना जैसे अन्य राज्य इसके लिए तैयार हैं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सरकार से इसपर सर्वदलीय बैठक की मांग की. उन्होंने कहा कि क्या इस नई जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा देश की सभी जातियों की विस्तृत गणना शामिल होगी जो हर जनगणना में की जाती रही है. संविधान के अनुसार, ऐसी जाति जनगणना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है.

बीजेपी की सहयोगी जेडीयू भी जाति जनगणना के पक्ष में रही है. जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा, हम देशव्यापी जाति जनगणना के पक्ष में हैं. हमें बहुत खुशी होगी अगर सरकार जाति जनगणना भी शामिल करे. हम गठबंधन का हिस्सा हैं और हमने इस मुद्दे को NDA में उठाया है. जेडीयू का कहना है कि जाति जनगणना समाज के वंचित वर्गों को सशक्त बनाएगी.

पूछे जाएंगे 31 सवाल

लोगों से सर्वे में 31 सवाल पूछे जाएंगे, जिसमें परिवार के व्यक्तियों की कुल संख्या, परिवार की मुखिया महिला है या नहीं, परिवार के पास कितने कमरे हैं, परिवार में रहने वाले विवाहित जोड़ों की संख्या से जुड़े सवाल भी शामिल हैं.

प्रश्नों में यह भी शामिल है कि क्या परिवार के पास टेलीफोन, इंटरनेट कनेक्शन, मोबाइल या स्मार्टफोन, साइकिल, स्कूटर या मोटरसाइकिल है और क्या उनके पास कार, जीप या अन्य वाहन है. इसके अलावा परिवार के रोजमर्रा के जीवन से जुड़े अन्य सवाल भी पूछे जाएंगे.

हर जनगणना के बाद परिसीमन

परिसीमन प्रत्येक जनगणना के बाद होता है. यह प्रक्रिया नवीनतम जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार संसद और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को समायोजित करती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी संसद सदस्य या विधानसभा सदस्य द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले लोगों की संख्या लगभग समान है. फिलहाल परिसीमन कम से कम 2026 तक निलंबित है.

2001 के 84वें संवैधानिक संशोधन में कहा गया है कि अगला परिसीमन 2026 के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर ही हो सकता है. इसलिए, भले ही 2021 की जनगणना समय पर नहीं हुई हो. अगर जनगणना पूरा होने में दो साल लगते हैं परिसीमन सैद्धांतिक रूप से उसके तुरंत बाद हो सकता है.

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