ग्वालियर: पवित्र कार्तिक मास का समापन चार दिन बाद पूर्णिमा को होगा। सनातन धर्मावलंबियों के लिए यह मास अध्यात्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। नगर में मोटे गणेशजी वाली गली, चावड़ी बाजार में दो सदी से अधिक प्राचीन नागरकर श्रीराम मंदिर हैं। इस मंदिर में अयोध्याधाम की पवित्र सरयू नदी से प्रकट हुईं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, माता जानकी और लक्ष्मण विराजित हैं।
यह देश का ऐसा इकलौता मंदिर है, जहां कार्तिक मास में प्रतिदिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपने दशावतार में श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं। इस मंदिर की एक सदी प्राचीन परंपरा है कि स्थायी विग्रहों का शृंगार श्रीहरि के अवतारों के रूप में किया जाता है।
अहमद नगर के साद महाराज ने की थी यहां प्रभु की साधना
- नगरकर परिवार के पूर्वज मार्तंड महाराज अहमदनगर महाराष्ट्र के थे। भाइयों से विवाद के कारण लाखो रुपयों की सम्पत्ति को त्यागकर परमेश्वर की आराधना के लिए किसी एकांत स्थान की तलाश में यहां पहुंचे। सन 1822 में गोरखी निर्माण के समय नजदीक ही प्रभु श्रीराम की आराधना शुरू की।
- समय के साथ उनके शिष्यों की संस्था में बढ़ोतरी हुई। शिष्यों मे पन्ना गुरुजी, जनाईन कुआ, नानूराव कर्वे कृन्ळा रान आदि के सहयोग से श्रीराम मंदिर का निर्माण हुआ। मार्तंड महाराज अहमदनगर से सिर्फ अपने साथ छह पीतल के विग्रह लेकर आए थे।
- इन्हीं की पूजा-अर्चना होती थी। सरयू नदी से प्राका्य हुआ था श्रीराम, माता जानकी, लक्ष्मण का: मंदिर के प्रवक्ता निशिकांत सुरंगे ने बताया कि 1923 में मार्तंड महाराज आराधना लीन थे। उन्हें दृष्टांत हुआ कि प्रभु श्रीराम, माता जानकी व लक्ष्मण तीनो सरयू नदी में है।
- महाराज प्रभु आज्ञा का पालन करते हुए सरयू तट पर पहुंचे। जहां तीनों विग्रह का प्रकाट्य पवित्र सरयू से हुआ। जहां तीनों विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा 1840 में निर्मित मंदिर में विधि विधान के साथ हुई।
ऐसे हुई झांकियों के शुरुआत
एक दिन मार्तंड महाराज आराधना में लीन थे। 17 से 18 घंटे उनके शरीर में कोई हलचल नहीं हुई। शिष्य चिंतित थे। उन्हें लगा कि महाराज प्रभु के श्रीचरणों में लीन हो गये। एकाएक उनकी तंद्रा टूटी और उन्होंने कहा कि हमारे आराध्य का आदेश हुआ है कि संपूर्ण कार्तिक मास स्थायी विग्रहों के दर्शन श्रीविष्णु के दशवातर, 14 उपअवतार व उनकी लीलाओं के रूप में होंगे। तभी कार्तिक में प्रत्येक दिन इन झांकियों से विग्रह का शृंगार कार्तिक मास में होने लगा।
इन लोगों ने इस परंपरा को कायम रखा
मंदिर की संस्थापक मार्तंड महाराज का स्वर्गवास 1909 में हुआ। उसके बाद उनके नाती गंगाधर महाराज 1955 तक न उसके वाह शिष्य श्रीएकनाथ महाराज नगरकर ने 1994 तक परंपरा को जारी रखा। उनके परलोकगमानके बाद पुत्र सुभाष नागरकर ने इस पारंपरा को रखा है। वर्तमान में मंदिर का संचालन सुभाष नगरकर उनकी पत्नी अन्नपूर्णा नगरकर व उनके पुत्र सुबोधन नगरकर हैं। कार्तिक मास में प्रतिदिन एक अवतार से मूर्तियों का शृंगार किया जाता है। सुबह कांकड़ आरती और शाम को माखन आरती करते हैं।