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शिंदे के दिए जख्म और BJP की चोट का दर्द अभी नहीं भूले उद्धव, NDA में वापसी पर पूर्ण विराम

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही गठबंधन ने सीएम चेहरे पर सस्पेंस बनाए रखा है. ऐसे में सियासी चर्चा तेज हो गई थी कि चुनाव नतीजे आने के बाद सत्ता के गेम के लिए फिर सियासी ‘खेला’ होगा. एकनाथ शिंदे ने ढाई साल पहले तख्तापलट और शिवसेना अपने कब्जे में लेकर जो सियासी जख्म दिए हैं, वो उद्धव ठाकरे के लिए अभी भी हरे हैं. इतना ही नहीं बीजेपी की चोट भी उद्धव नहीं भूले हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में वापसी करने की संभावना पर पूर्णविराम लगा दिया है.

सियासत में दोस्ती और दुश्मनी स्थायी नहीं होता है बल्कि मौके की नजाकत के हिसाब से तय होती है. 2019 चुनाव में उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा थी, लेकिन नतीजे आने के बाद नाता तोड़ लिया था. उद्धव ने बीजेपी के साथ लगभग ढाई दशक पुरानी दोस्ती तोड़कर अपने वैचारिक विरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली थी. उद्धव के खिलाफ एकनाथ शिंदे ने 2022 में 38 शिवसेना विधायकों के साथ बगावत कर बीजेपी के समर्थन से सरकार बना ली.

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एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के साथ लेने के बाद भी बीजेपी महाराष्ट्र के 2024 लोकसभा चुनाव में कोई करिश्मा नहीं दिखाना तो दूर अपनी सीटें ही नहीं बचा सकी. अब विधानसभा के चुनावी सरगर्मी के बीच कहा जा रहा है कि नतीजे के बाद उद्धव ठाकरे सियासी पाला बदल सकते हैं. महाविकास अघाड़ी का साथ छोड़कर दोबारा से बीजेपी साथ जा सकते हैं, लेकिन उद्धव ठाकरे ने इस तरह की सभी संभावनाओं पर विराम लगा दिया है. उन्होंने कहा कि बीजेपी के साथ जाने का अब सवाल ही नहीं है.

बीजेपी की चोट नहीं भूले उद्धव ठाकरे

उद्धव ठाकरे ने बीजेपी द्वारा दिए सियासी चोट को नहीं भूले हैं. उन्होंने अपने इंटरव्यू में विधानसभा चुनाव के बाद नया गठबंधन बनने के सवालों पर कहा, बहुत सारे लोग, बहुत सारी बातें करते हैं. मैं बीजेपी के साथ क्यों जाऊं? उन्होंने (बीजेपी) मेरी पार्टी (शिवसेना) तोड़ी और उसे खत्म करने की साजिश कोशिश की. आगे उद्धव ने कहा कि मेरे परिवार को बदनाम कर रहे हैं. मेरे बेटे को बदनाम किया. यहां तक कि मुझे नकली संतान कहा गया, तो क्या मोदी जी नकली संतान के साथ हाथ मिलाएंगे?

उद्धव ठाकरे ने कहा कि मेरे पिता जी बालासाहेब ठाकरे और मेरी माता जी का अपमान है. ये अपमान किसी और ने नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी जी ने किया है. खैर उनकी बातों पर आगे बात नहीं करना चाहता हूं, क्योंकि उन्हें तो भगवान ने भेजा है. उन्होंने कहा कि बीजेपी ने सबसे पहले 2014 में मेरा साथ छोड़ा था. उस वक्त भी मैं हिन्दू ही था. गठबंधन तो उन्होंने ही तोड़ा था. मैंने नहीं तोड़ा है. 2019 में उन्होंने फिर मुझे फंसाया . मैंने नहीं फंसाया उनको, इसलिए मैंने उनको छोड़ दिया. बीजेपी को सिर्फ सत्ता चाहिए, जिसके लिए किसी को भी तोड़ सकती है. बीजेपी का सत्ता जिहाद और कुर्सी जिहाद है. ऐसे में बीजेपी के साथ नहीं जाया सकता है.

शिंदे के दिए जख्म नहीं भूले उद्धव ठाकरे

एकनाथ शिंदे के द्वारा दिए गए सियासी जख्म को उद्धव ठाकरे अभी तक नहीं भूले हैं. शिंदे ने साल 2022 में उद्धव ठाकरे का तख्तापलट करके बीजेपी के समर्थन से खुद ही मुख्यमंत्री बन गए थे. शिंदे सरकार ही नहीं बल्कि शिवसेना भी उद्धव से छीन लिया है. यही वजह है कि शिंदे द्वारा दिए गए जख्म अभी भी हरे हैं. उद्धव ठाकर ने कहा कि शिंदे का नाम लिए बगैर कहा कि महाराष्ट्र की जनता गद्दारों को सबक सिखाना जानती है और लोकसभा चुनाव में अपने ट्रेलर दिखा चुकी है.

उद्धव ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र में कुछ भी हो सकता है और यहां की जनता ने उन्हें (महायुति) को हरा कर दिखाया. उद्धव ने एकनाथ शिंदे का नाम लिए बिना कहा,आज तक वो जो कुछ भी बने हैं,वो मेरे पिताजी ने इनको बनाया है. अगर बीजेपी के धोखा देने के कारण मैं सीएम बना था तो आपने (शिंदे) गद्दारी करके उतारा क्यों है? ये मैं याद दिलाना चाहता था. दुख तो है.

उद्धव ने कहा कि आज तक हमारे घर से शिंदे को जो कुछ लेना था, वो लिया. मेरे पिताजी ने इनको बहुत कुछ दिया. जो परिवारवाद की बात करते हैं, इतने बड़े परिवार हमने ही तो बड़े किए हैं.क्या उस परिवार से बालासाहब का पुत्र अगर सीएम बन गया तो इसमें गलत क्या था. क्या वो मुख्यमंत्री नहीं बन सकता.सिर्फ आपका ही बेटा, आपके ही पिताजी बन सकते हैं. उन्होंने एकनाथ शिंदे की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अपने पिताजी का नाम तो लीजिए. उस वक्त भी मेरे पिताजी का नाम चुरा लिया. मेरे पिता जी ने सबकुछ दिया है. इनको शर्म नहीं आ रही है कि पिताजी का नाम लेकर वो वोट मांग रहे हैं.

उद्धव ठाकरे ने संभावना पर लगाया विराम

उद्धव ठाकरे की शिवसेना शुरू से ही हिंदुत्व के एजेंडे पर रही है और सावरकर को अपने आदर्श नेताओं में गिनती रही है. सीएम पद के लिए उद्धव ठाकरे ने अपने विरोधी विचारधारा वाली कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी, लेकिन वैचारिक स्तर पर टकराव बना रहा. सावरकर के सवाल पर मतभेद हैं. उद्धव ठाकरे नहीं चाहते कि राज्य में कांग्रेस सावरकर के खिलाफ बोले, जबकि कांग्रेस सावरकर को लेकर बीजेपी और संघ पर सवाल खड़े करती रही. हिंदुत्व और सावरकर के मुद्दे पर कांग्रेस और उद्धव खेमे में अलग-अलग सुर सामने आते रहते हैं.

उद्धव ठाकरे खेमा पहले ही सीएम पद की लालसा जाहिर कर चुके हैं और मानकर चल रहे हैं कि इंडिया गठबंधन अगर चुनाव जीतकर सत्ता में लौटता है तो उद्धव ठाकरे सीएम बनेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि जिस उद्धव ठाकरे ने इसी सवाल पर राजग से नाता तोड़ लिया, वह एमवीए की सरकार में दूसरे दल के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे. कांग्रेस भी लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में अपना सीएम बनाने का सियासी तानाबाना बुन रही है, जिसके चलते ही कहा जाने लगा कि उद्धव ठाकरे विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने चुनाव के बीच यह साफ कर दिया है कि न ही बीजेपी के साथ जाएंगे और न ही शिंदे को अपने साथ मिलाएंगे?

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