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शर्म करें जनता को वोट बैंक समझने वाले जनप्रतिनिधि ! पंचायत ने नहीं दिया ध्यान, तो ग्रामीणों ने सामूहिक श्रमदान कर पुराने तालाब के जीर्णोद्धार का उठाया बीड़ा

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डिंडोरी। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य डिंडोरी जिले में अमृत तुल्य जल की एक-एक बूंद को सहेजने करोड़ों रूपये खर्च किए जा रहे हैं. मनरेगा और पंद्रहवें वित्त आयोग से प्रति तालाब 2 लाख रुपये खर्च कर तालाब निर्माण जा रहा है. लेकिन समनापुर विकासखंड का एक गांव ऐसा भी है, जहां जनप्रतिनिधियों ने ध्यान नहीं दिया, तो स्थानीय लोगों ने सामूहिक श्रमदान कर पुराने तालाब के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया है. काफी हद तक सफल भी रहे हैं.

हम बात कर रहे हैं प्रेमपुर माल में ठाकुर टोला की, जहां बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों ने तालाब के कायाकल्प की ठान रखी है. इसके लिए बाकायदा प्रत्येक परिवार से 1-1 हजार रुपये चंदा किया गया है. फिर उसी चंदे से तालाब निर्माण में लगने वाले वाहनों की डीजल व्यवस्था कर निस्वार्थ सेवा भाव से घंटों सामूहिक श्रमदान भी दे रहे है.

पंचायत प्रतिनिधियों से आ चुके थे तंग

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तालाब निर्माण में सामूहिक श्रमदान दे रहे महेश सिंह ने बताया कि वह विगत 7 – 8 वर्षों से प्रयासरत थे कि किसी तरह पंचायत के माध्यम से तालाब का जीणोद्धार हो जाए, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद बात बनी नहीं और धीरे-धीरे तालाब ने अपना अस्तित्व खो दिया था. दलदल होने के चलते मवेशी भी फंस जाते थे. ऐसी स्थिति में जब पंचायत स्तर पर बात नहीं बनी, तो विवश हो स्थानीयजनों ने एक राय होकर कार्य को गति देना शुरू कर दिया.

रंग लाई मेहनत

लाल जी प्रसाद ठाकुर ने बताया कि तालाब एक तरफ से फूट चुका था, लेकिन हमारी मेहनत रंग लाई और हम तालाब को पुराना स्वरूप देने में कामयाब रहे. आगे भी यह कार्य निरंतर चलता रहेगा. जिसमे हम पैसों की बाधा नहीं आने देंगे. अगर जरूरत पड़ी तो स्थानीयजन दोबारा पैसे एकत्रित करेंगे. लेकिन तालाब के वास्तविक स्वरूप को लाकर रहेंगे. ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी इस विरासत को सहेजने में सकारात्मक भूमिका अदा करते रहे.

समय पर प्रशासन ने भी नहीं उठाया कोई कदम

इस दौरान गांव के ही बुजुर्ग धाम सिंह ने आगे आकर कहा कि उन्हें अब किसी से मदद की दरकार नहीं है ना ही शासन से और ना ही प्रशासन से. जब जरूरत थी तो कुछ नहीं किया. अब क्या मदद की आस रखे. लिहाजा इतना जरूर कहा कि जो होता है अच्छे के लिए होता है. इस कार्य के माध्यम से आने वाली पीढ़ियां जल की उपयोगिता को समझ पाये औऱ वह भी आगे आकर ऐसे कार्य करते रहें.

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