ग्वालियर: तत्कालीन साडा अध्यक्ष व भाजपा नेता राकेश जादौन, CEO व वर्तमान निवाड़ी कलेक्टर तरुण भटनागर पर मामला दर्ज- मास्टर प्लान से छेड़छाड़ का भी आरोपसाडा में रहते हुए किए गए भ्रष्टाचार पर अब लोकायुक्त ने भाजपा नेता व तत्कालीन साडा अध्यक्ष राकेश जादौन, तत्कालीन CEO और वर्तमान में निवाड़ी कलेक्टर तरुण भटनागर सहित 8 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है। इन्होंने साल 2016 में SADA(विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण) में रहते हुए अधिकार न होने के बाद भी आवासीय और सार्वजनिक जमीन को रायरू डिस्टलरी को शराब फैक्ट्री के विस्तार के लिए अनुमति देकर दी थी।शराब फैक्ट्री को फायदा पहुंचाने के लिए इन्होंने मास्टर प्लान में भी छेड़छाड़ की है। जिससे सरकार को करीब एक करोड़ रुपए का चूना लगा है। अब यह भी जांच में सामने आया है। राकेश जादौन, केन्द्रीय कृषि मंत्री के काफी करीबी माने जाते है। पर लोकायुक्त ने उन पर शिकंजा कस दिया है।ग्वालियर का विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरणग्वालियर में साडा (विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण) का गठन सालों पहले ग्वालियर के एक विशेष क्षेत्र को आवासीय व सार्वजनिक महत्व के लिए विकसित करने के लिए हुआ था, लेकिन न तो यह विशेष क्षेत्र विकसित हुआ न ही यहां शहर के लोग बसे। पर विकास के नाम पर यहां राजनीतिक पार्टियों ने अपने अध्यक्ष सहारे खुद का जमकर विकास किया है। ऐसे ही साल 2016 के एक भ्रष्टाचार के मामले मंे लोकायुक्त ने तत्काली साडा अध्यक्ष भाजना नेता राकेश सिंह जादौन और तत्कालीन CEO तरुण भटनागर जो अभी निवाड़ी कलेक्टर भी हैं पर भ्रष्टाचार अधिनिमय के तहत मामला दर्ज किया है। साल 2011 में जिनावली, मिलावली, निरावली का कुल रकवा 26.59 हेक्टेयर जमीन जो साडा की विकास योजना 2011 में आवासीय वाणिज्यिक, सार्वजनिक मार्ग एवं हरित क्षेत्र के उपयोग की थी। उक्त सर्वे क्रमांक की भूमि रायरू डिस्टलरी को अधिकार न होने के बाद भी शराब फैक्ट्री के विस्तार के लिए तत्कालीन अध्यक्ष राकेश जादौन व तत्कालीन CEO तरुण भटनागर ने अनुमति दी थी। इस जमीन पर औद्योगिक निर्माण व भवन अनुज्ञा के लिए 1.35 लाख रुपए की फीस जमा कर आवेदन किया गया था।अध्यक्ष, CEO के सामने लाया गया था प्रस्ताव- इस आवेदन को उपयंत्री नवल सिंह द्वारा 14 लाख 4 हजार रुपए की फीस जमा कराने का प्रस्ताव CEO साडा के सामने लाया गया था। यह आवेदन 7 मई 2016 को लाया गया था। इसके बाद यह शुल्क जमा कराने के लिए पत्र जारी कर दिया गया था। इसके बाद 10 जून 2016 को यह शुल्क जमा कराने के बाद उपयंत्री, CEO और साडा अध्यक्ष के अनुमोदन के लिए प्रस्ताव बनाकर वापस भेजा गया। जिस पर सभी ने अनुमोदन कर दिया गया, जो कि गलत है। क्योंकि यह जमीन साडा की आवासीय वाणिज्यिक, सार्वजनिक मार्ग व हरित क्षेत्र के उपयोग की जमीन थी। इस पर शराब फैक्ट्री के निर्माण की अनुमति देना न तो अध्यक्ष न ही CEO के अधिकार क्षेत्र मंें था, लेकिन नहीं इसकी अनुमति दी गई। इसके लिए साडा के मास्टर प्लान मंे भी छेड़छाड़ की गई। इससे सरकार को करीब एक करोड़ जिससे उन पर कोई सवाल खड़े न कर सके। यही बात को सामाजिक व आरटीआई कार्यकर्ता संकेत साहू ने उठाया था। वह साल 2017 से इस मामले में मामला दर्ज कराने के लिए लड़ रहे थे।
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