हिसार: हिसार की आदमपुर सीट पर भाजपा का कमल खिल गया है। 54 साल के इतिहास में पहली बार भाजपा ने यह सीट जीती। पिछले 3 साल में लगातार 2 उपचुनाव हार चुकी BJP ने इस सिलसिले को तोड़ दिया।वहीं भजन लाल का परिवार अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहा। भव्य की जीत में जितना भजन लाल परिवार का राजनीतिक रसूख काम आया, उससे कहीं ज्यादा जातीय समीकरण और भाजपा की शानदार रणनीति काम आई।कांग्रेस को गुटबाजी ले डूबी। दूसरे नंबर पर आई कांग्रेस को हरियाणा के सभी नेताओं का साथ नहीं मिला। सिर्फ भूपेंद्र हुड्डा और उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा ने यहां प्रचार किया। दूसरे गुट की कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी की प्रचार से दूरी रही। जिसकी वजह से कांग्रेस यह सीट हार गई। आम आदमी पार्टी (AAP) और इनेलो की राजनीति को आदमपुर के लोगों ने नकार दिया।कांग्रेस में गुटबाजी इस कदर है कि कांग्रेस न संगठन बना पा रही है और न ही चुनाव इकट्ठे होकर लड़ पा रही है।कांग्रेस हावी हुई तो BJP एक्शन में आईचुनाव में एक समय ऐसा भी आया,जब बिश्नोई परिवार के हाथ ये यह चुनाव निकलता जा रहा था। कांग्रेस उम्मीदवार जय प्रकाश हावी होते जा रहे थे। यह देख भाजपा ने तुरंत आदमपुर में मंत्रियों सहित प्रभावशाली नेताओं को उतार दिया। जो जातीय समीकरण को साधने में कामयाब रहे, साथ ही जनता को 26 साल बाद सत्ता में साझेदारी करने का एक अंतिम अवसर बता गए।CM मनोहर लाल ने भव्य की दादी जसमा देवी से पोते के लिए वोट की अपील कराई।हरियाणा CM ने लगाई जीत पर मुहरभव्य की जीत पर अंतिम मुहर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल की आदमपुर की रैली ने लगा दी, जब सीएम ने पूर्व सीएम भजनलाल की शान में कसीदे पढ़े और आदमपुर की जनता को 2005 में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह द्वारा दिया गया जख्मों को याद दिला दी। उस समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा, भजन लाल को साइड लाइन करके सीएम बन गए थे।इन तीन उम्मीदवारों के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा था लेकिन AAP के सतेंद्र सिंह दौड़ से पूरी तरह बाहर रहे। मुकाबला भव्य और जयप्रकाश के बीच ही हुआ।जानिए कैसे अंतिम समय में BJP की रणनीति कारगर नजर आ रही?आदमपुर उपचुनाव भले ही भजनलाल परिवार की विरासत से जुड़ा हो लेकिन हरियाणा BJP ने भी इसकी पूरी रणनीति बनाई। कैंडिडेट चयन से लेकर चुनाव प्रचार तक पर स्ट्रेटजी बनाकर पूरा काम किया गयाइसके कुछ प्रमुख प्वाइंट्स पढ़िए :-कुलदीप बिश्नोई जीतने के बाद मिलते नहीं थे। इसकी आदमपुर के लोगों में बड़ी नाराजगी थी। BJP इसे तुरंत भांप गई। इसलिए कुलदीप की जगह भव्य बिश्नोई को टिकट दी। भाजपा ने आदमपुर की जनता को भी मैसेज दिया कि उनकी नाराजगी जायज है। इसलिए कुलदीप को इस बार टिकट नहीं दी।कुलदीप ने अपने इस्तीफे के दिन से ही 26 साल का बनवास खत्म करने का प्रचार शुरू कर दिया था। वह बार- बार पूरे चुनाव में इसी बात को दोहराते रहे। लोग सत्ता पक्ष से जुड़ने के लिए आकर्षित होते गए।कुलदीप के पार्टी में आते ही 26 साल से विपक्ष में बैठे आदमपुर में विकास कार्य शुरू करा दिए। इसके लिए उपचुनाव का इंतजार नहीं किया। जिससे आदमपुर की जनता में भरोसा बढ़ा।प्रचार के अंतिम दिन CM मनोहर लाल प्रचार करने पहुंचे। सरकार से विकास का भरोसा दिलाया। दादी जसमा देवी से भव्य के लिए वोटिंग अपील करा इमोशनल कार्ड भी खेला।सबसे अहम यह रहा कि डिप्टी CM दुष्यंत चौटाला इसी रैली में शामिल कर जजपा के वर्करों को भी साथ आने का स्पष्ट संकेत दे दिया।कुलदीप ने भी मतदाताओं की नाराजगी भांप कर रैली में मंच से अपने पूरे परिवार की ओर से इमोशनल अपील की और कहा कि इस नाराजगी को वोट में न बदलना।भजनलाल परिवार के हक में रहा मतदान प्रतिशतआदमपुर उपचुनाव में 76.51% मतदान हुआ। यह वोटिंग % पूर्व CM चौधरी भजनलाल परिवार की जीत के लिए हमेशा मुफीद रही। आदमपुर सीट पर जब-जब 70 से 80% के बीच मतदान हुआ तो भजनलाल परिवार यह सीट जीतने में कामयाब रहा। इस बार भी आंकड़ा परिवार का गढ़ बचाने उतरे भव्य बिश्नोई के हक में रहा।पिछले यानी 2019 में 75.79% वोटिंग हुई थी, इस चुनाव में कुलदीप बिश्नोई जीते। उन्होंने भाजपा की चर्चित नेता सोनाली फोगाट को 29 हजार वोट से हराया था।इससे पहले 2014 के विधानसभा चुनाव में 78.21% प्रतिशत वोटिंग हुई। तब कुलदीप बिश्नोई ने INLD के कुलवीर सिंह को 17 हजार वोट से हराया।1968 से लेकर 2019 तक इस सीट पर 70 से 81% ही मतदान होता रहा है। हर बार यहां भजनलाल परिवार ही जीतता रहा है।सत्ता विरोधी लहर नहीं क्योंकि ऐलनाबाद उप चुनाव से कम वोटिंग हुईराजनीतिक माहिर मानते हैं कि चुनाव में जब मतदान ज्यादा होता है तो उसे सत्तापक्ष के खिलाफ बदलाव का माना जाता है। आदमपुर से पहले अक्टूबर 2021 के ऐलनाबाद उपचुनाव हुए। जिसमें 81% से ज्यादा मतदान हुआ। यह सीट इनेलो ने जीती। तब माना गया कि सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी उन्हें मतदान केंद्र तक खींच लाई। इसके उलट आदमपुर में ऐलनाबाद उपचुनाव के बराबर तो दूर, यह आंकड़ा पिछली बार यानी 2019 से 1% भी ज्यादा नहीं है।कांग्रेस के जेपी के हार की वजह के बने ये कारणआदमपुर में भव्य के मुकाबले कांग्रेस ने हिसार से 3 बार के सांसद जयप्रकाश को उतारा। हालांकि प्रचार में उन्हें सिर्फ भूपेंद्र हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा सहित कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष उदयभान का ही सहारा मिला। कांग्रेस के दूसरे हैवीवेट दिग्गज कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी नजर नहीं आई। वहीं बाहर से भी कांग्रेस का कोई नेता यहां प्रचार करने नहीं पहुंचा। जो कि जेपी की हार की वजह बनी।जेपी का कलायती होना बड़ी वजहजेपी का स्थानीय न होना ही उसकी हार की सबसे बड़ी वजह रही। वे कैथल जिले के कलायत क्षेत्र से है। जेपी ने 2009 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था, परंतु उसके बाद से वह कभी आदमपुर की जनता से लगाव नहीं रखा। 13 साल बाद वे सीधे टिकट लेकर चुनाव लड़ने आ गए।बागडी और गादडी की वीडियो वायरलआदमपुर बागडी भाषाई क्षेत्र है। चुनाव में जेपी का पुराना वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे बागड़ी और गादड़ी के लिए लठ उठाने की बात कह रहे हैं, यह चुनाव में खूब वायरल हुआ। आप उम्मीदवार सतेंद्र ने इसे अस्मिता की लड़ाई मानकर ‘मैं हूं बागड़ी’ के बैनर तक लगा दिए थे।कुरडाराम की वजह से भी जेपी का नुकसानकुरडाराम ने कांग्रेस की टिकट न मिलने पर बगावत कर दी और इनेलो से चुनाव मैदान में आ गए। कांग्रेस को बालसमंद से भारी मत मिलने की उम्मीद थी। कुरडाराम जाट बाहुल्य गांव बालसमंद से ही है। करीब दस हजार वोट है। अंतिम दिन कुरडाराम ने गांव में जनसभा करके अपने सिर से पगड़ी उतारकर लेक्चरर स्टैंड पर रख दी और इसकी लाज रखने की अपील की। कुरडाराम की इस अपील पर बालसमंद से उन्हें अच्छे वोट मिले। इससे जयप्रकाश को नुकसान हुआ।इनेलो उम्मीदवार कुरडाराम।AAP की उम्मीदों को झटकाआम आदमी पार्टी की उम्मीदों को इस उपचुनाव से झटका लगा है। वह आदमपुर में जीतकर विधानसभा जाना चाहते थे लेकिन यहां पंजाब जैसा चमत्कार नहीं हुआ। आप के सतेंद्र सिंह बुरी तरह हार गए। इसकी बड़ी वह उनके प्रचार से अरविंद केजरीवाल समेत दूसरी सीनियर लीडरशिप का दूर रहना रहा। यहां आप ने कोई खास रणनीति भी नहीं बनाई। उनका फोकस गुजरात चुनाव पर ही टिका रह गया।
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