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वाराणसी की कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की आपत्ति दूसरी बार खारिज; 2 दिसंबर को फ्रेम होंगे इश्यू

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वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में पत्थर की यह संरचना बीती 16 मई को मिली थी। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह प्राचीन शिवलिंग है। मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यह खराब पड़ा पुराना फव्वारा है।ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने सहित तीन मांगों से संबंधित भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान का मुकदमा सुनवाई योग्य है। यह आदेश वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिविजन महेंद्र कुमार पांडेय की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने दिया है। 23 पेज का आदेश सुनाते हुए कोर्ट ने रिटेन स्टेटमेंट फाइल करने और इश्यू फ्रेम करने के लिए 2 दिसंबर की अगली डेट फिक्स की है।गौरतलब है कि यह दूसरा अवसर है जब ज्ञानवापी से संबंधित मुकदमे में मुस्लिम पक्ष की आपत्ति कोर्ट ने खारिज की है। इससे पहले 12 सितंबर को वाराणसी के जिला जज की कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा था कि मां श्रृंगार गौरी का केस सुनवाई योग्य है।आइए, अब आपको बताते हैं इस केस में कोर्ट के ऑर्डर की अहम बातें…यह फोटो विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह विसेन और उनकी पत्नी किरन सिंह विसेन की है।सबसे पहले जानें मुकदमें में क्या मांगें हैंयह मुकदमा भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान ने अपने नेक्स्ट फ्रेंड किरन सिंह विसेन और अन्य के माध्यम से 24 मई 2022 को दाखिल किया था। किरन सिंह विसेन विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह विसेन की पत्नी और इस संगठन की अंतरराष्ट्रीय महासचिव हैं। मुकदमे में मांग की गई है कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का कब्जा हिंदुओं और भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान को सौंप दिया जाए। वादी को मस्जिद के अंदर कथित तौर पर मिले स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान आदि विश्वेश्वर की पूजा करने की अनुमति दी जाए। ज्ञानवापी परिसर में मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित किया जाए।ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित अलग-अलग मुकदमे वाराणसी की सिविल कोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं।वर्शिप एक्ट सहित तीन कानून नहीं प्रभावी होंगेवादी पक्ष ने दावा किया है कि ज्ञानवापी मस्जिद का परिसर पूरी तरह से भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान का अनादि काल से है। वर्ष 1669 में मंदिर का एक हिस्सा मुगल शासक औरंगजेब ने गिरा दिया था और उसके ध्वस्त ढांचे पर मस्जिद बना दी थी। मुगल शासक औरंगजेब द्वारा पुराने मंदिर के ऊपरी हिस्से को गिराने के बाद भी उसकी मुख्य संरचना बरकरार रही और मंदिर की प्रकृति कभी नहीं बदली। इसलिए प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 यहां लागू नहीं होता है।कोर्ट ने कहा कि क्या मंदिर के एकमात्र ऊपरी हिस्से को बलपूर्वक गिराने से और केवल उस पर सुपर स्ट्रक्चर लगाने से मंदिर का धार्मिक चरित्र बदल जाता है। मुकदमे के कथनों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि लंबे समय से वर्ष 1993 तक वादी लगातार विवादित स्थान पर मां श्रृंगार गौरी, भगवान हनुमान, भगवान गणेश की पूजा कर रहे थे। 1993 के बाद उत्तर प्रदेश राज्य के नियम के अनुसार वर्ष में केवल एक बार पूजा करने की अनुमति दी गई। इसे देखते हुए यह संदेहास्पद है कि 15 अगस्त 1947 को विवादित स्थान का धार्मिक स्वरूप क्या था।कोर्ट ने कहा कि वादी का दावा है कि मंदिर की मुख्य संरचना बरकरार है और केवल ऊपरी हिस्से को ध्वस्त कर दिया गया था। प्रतिवादी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी का दावा है कि वहां 600 साल से मस्जिद है और मुस्लिम उस जगह पर नमाज अदा कर रहे हैं। मगर, इस स्तर पर यह निर्धारित करना मुश्किल है कि वास्तविकता क्या है। यह बगैर ठोस साक्ष्य के निर्धारित नहीं किया जा सकता है।कोर्ट ने कहा कि यह प्रत्येक पक्ष का कानूनी अधिकार है कि वह अपने पास उपलब्ध सर्वोत्तम साक्ष्य की मदद से अपने मामले को साबित करे। यदि वादी द्वारा बताए गए तथ्य सही हैं तो पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के प्रावधान इस मुकदमे पर नहीं लागू होंगे। इसलिए, इस स्तर पर विवादित संपत्ति की संदिग्ध धार्मिक प्रकृति की स्थिति में इस अदालत का मानना है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 वादी के मुकदमे पर रोक नहीं लगाता है।कोर्ट ने कहा कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 द्वारा मंदिर परिसर के भीतर या बाहर बंदोबस्ती में स्थापित मूर्तियों की पूजा करने के अधिकार का दावा करने के संबंध में कोई रोक नहीं लगाई गई है। इसलिए 1983 के एक्ट के आधार पर मुकदमे की सुनवाई पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों से संबंधित पत्रावलियों को देखने के बाद यह भी पाया कि मुकदमे की सुनवाई पर इंडियन लिमिटेशन एक्ट या वक्फ एक्ट द्वारा भी रोक नहीं लगाई जा सकती है।यह फोटो ज्ञानवापी मस्जिद के पिछले हिस्से की है। हिंदू पक्ष का दावा है कि मंदिर का एक हिस्सा तोड़ कर उस पर मस्जिद बनाई गई है। मंदिर की मूल प्रकृति आज भी जस की तस है।मुस्लिम पक्ष दाखिल करेगा रिवीजनकिरन सिंह विसेन के अधिवक्ता मान बहादुर सिंह, शिवम गौर और अनुपम द्विवेदी ने कहा कि अब मुकदमे की नियमित सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है। वह आश्वस्त थे कि उनके द्वारा पेश की गई दलीलों के आधार पर अदालत का ऑर्डर उनके ही पक्ष में आएगा। वहीं, मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता एखलाक खान, रईस अहमद और मेराजुद्दीन खान सहित उनके अन्य साथी एडवोकेट अदालत के आदेश से खुश नहीं हैं।उन्होंने कहा कि मां श्रृंगार गौरी केस और यह मुकदमा पूरी तरह से अलग है। हमें ऐसे ऑर्डर की उम्मीद नहीं थी। हम कोर्ट के ऑर्डर का अध्ययन करेंगे। इसके बाद ऑर्डर के खिलाफ रिवीजन दाखिल करेंगे। जरूरत पड़ी तो हम हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का भी रुख करेंगे।

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