होलिका दहन के दिन से ही देश में होली की धूम शुरू हो जाती है. हर तरफ रंग गुलाल ही उड़ता हुआ नजर आता है. भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के कानपुर में होली के रंग एक दो दिन नहीं बल्कि पूरे 7 दिन उड़ते हैं. हमारे देश में होली खेलने को लेकर बहुत सारे शहर दुनियाभर में फैमस हैं. कानपुर में मनाई जाने वाले होली बेहद अनूठी है. जिस प्रकार बरसाने की लड्डू और लठमार होली प्रसिद्ध है, उसी तरह सात दिनों तक खेली जाने वाली कनपुरिया होली भी फेमस है. इस होली की शुरुआत रंगपंचमी के दिन से होती है. आइए इस अनोखी होली के बारे में विस्तार से जानते हैं.
कानपुर गंगा मेला कब है? (Kanpur Ganga Mela 2024)
दिनांक 24 मार्च 2024, दिन रविवार को होलिका दहन होगा. कानपुर की होली पूरे भारत में अलग स्थान रखती है क्योकि कानपुर में होली से लेकर कानपुर हटिया होली मेला तक होली का उल्लास रहता है. इस बार 83वां होली का गंगा मेला दिनांक 30 मार्च, दिन शनिवार अनुराधा नक्षत्र पर प्राचीन परंपरा के अनुसार होगा.
साल 1942 से चली आ रही है गंगा मेला की परंपरा
क्रांतिकारियों का शहर कहे जाने वाले कानपुर में 7 दिन तक होली खेली जाती है. होली के लगभग 6-7 दिन बाद यहां अनुराधा नक्षत्र के दिन एक खास होली खेली जाती है. सातवें यानी अंतिम दिन गंगा मेला आयोजित किया जाता है और फिर होली का समापन होता है. इस अनोकी होली की परंपरा 1942 से ही चली आ रही है. इसके पीछे की कहानी, 1942 क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ी है.
कानपुर की रंग वाली क्रांति
यह प्रथा साल 1942 से शुरू हुई. उस समय देश में ब्रिटिश राज था. कानपुर का दिल कही जाने वाली जगह हटिया से. हटिया से लोहा, स्टील, कपड़ा और गल्ले का कारोबार होता है. यहां क्रातिकारियों का जमावड़ा लगता था. होली पूरे देश में मनाई जा रही थी. होली वाले दिन हटिया बाजार में रज्जन बाबू पार्क में कुछ नौजवान क्रांतिकारी होली खेल रहे थे और आजादी के नारे लगा रहे थे. अंग्रेजी हुकूमत की परवाह किए बगैर उन्होंने वहां तिरंगा फहरा दिया. इसकी भनक जब अंग्रेजों को लगी तो वो घोड़े पर सवार होकर कई सिपाही आए और तिरंगे को उतारने लगे. इस दौरान नौजवान क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच में संघर्ष होने लगा.
अंग्रेजी हुकूमत ने करीब 45 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इसके बाद लोग विरोध पर उतर गए. मजदूर, साहित्यकार, व्यापारी और आम जनता सबने उनका काम करने से मना कर दिया. आसपास के ग्रामीण इलाकों का भी कारोबार बंद हो गया. मजदूरों ने भी फैक्ट्री में काम करने से मना कर दिया. लोगों ने चक्का जाम कर सैकड़ों ट्रकों को खड़ा कर दिया. साथ ही सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए.
ऐसे हुई कानपुर गंगा मेला की शुरुआत
वहां की सभी महिलाएं और बच्चे रज्जन बाबू पार्क में धरने पर बैठ गए. ठप्प बाजारों और व्यापार से अंग्रेज परेशान हो गए. इससे परेशान होकर एक अंग्रेजी अफसर को उस पार्क में आना पड़ा जहां 4 घंटे तक लोगों से बातचीत चली. इसके बाद क्रांतिकारियों को होली के 6 दिन बाद अनुराधा नक्षत्र पर रिहा कर दिया गया. पूरा शहर उनको लेने के लिए जेल के बाहर इकट्ठा हो गया. जेल से रिहा होने के बाद जुलूस पूरा शहर घूमते हुए हटिया बाजार में आकर खत्म हुआ. उसके बाद क्रांतिवीरों के साथ लोगों ने जमकर होली खेली. तब से अब तक कानपुर में सात दिन के बाद होली खेलने की चली आ रही परंपरा को हर साल निभाया जाता है.
अब ऐसे आयोजित होता है गंगा मेला
गंगा मेला के दिन कानपुर में पर भीषण होली खेली जाती है. सुबह ध्वजारोहण के बाद राष्ट्रगान किया जाता है. उसके बाद क्रांतिकारियों को नमन करने के बाद रंग का ठेला निकलता है. इसके साथ ही सड़कों पर रंग से भरे ड्रम, ऊंट-घोड़े आदि भी चलते हैं. बिरहाना रोड, जनरल गंज, मूलगंज, चौक, मेस्टन रोड होते हुए कमला टावर आदि जगह से ठेला गुजरता है. जहां रास्ते में फूलों की वर्षा होती है. लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं. ठेले पर होली का विशात जुलूस निकाला जाता है जिसमें हजारों लोग इकट्ठा होते हैं. ये जुलूस कानपुर के करीब एक दर्जन मोहल्ले में घूमता हुआ दोपहर के 2 बजे रज्जन बाबू पार्क में आकर समाप्त होता है. इसके बाद शाम को सरसैया घाट पर गंगा मेला का आयोजन होता है, जहां लोग एक-दूसरे को होली की बधाई देते हुए रंग भी खेलते हैं.