भोपाल । 2018 में एकजुट होकर लड़ी कांग्रेस फिर उसी फॉर्मूले पर 2023 की तैयारी में है। 2018 में सत्ता में आने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दल बदलने पर बिखरी कांग्रेस फिर अपने आप को एकजुट करने की कवायद में जुट गई है। कांग्रेस पार्टी में हाशिए पर गए सीनियर लीडर की पार्टी में फिर से पूछ परख बढ़ गई है। हाल ही में कमलनाथ ने 2023 के चुनाव को लेकर राजनीतिक मामलों की समिति में पार्टी के सभी सीनियर नेताओं को शामिल कर इसकी शुरुआत कर दी है।पीसीसी चीफ और पूर्व सीएम कमलनाथ चुनाव से पहले पार्टी नेताओं तो फिर एकजुट रखने की कवायद में जुट गए हैं। उन्होंने 20 अप्रैल को बड़ी बैठक बुलाई है। उसमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व नेता प्रतिपक्ष को बुलाया गया है। बैठक में दिग्विजय सिंह, अरुण यादव अजय सिंह सभी शामिल होंगे। इसमें अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी नेताओं की जिम्मेदारी को भी तय किया जा सकता है। कांग्रेस प्रवक्ता के के मिश्रा का कहना है 2023 के लिहाज से पार्टी के बड़े नेताओं का एक साथ आना जरूरी है ताकि एकजुट और मजबूत तरीके से कांग्रेस चुनाव में उतर सके।
नए चुनाव में पुराना फॉर्मूला
2018 के चुनाव में कांग्रेस की एकजुटता ही उसकी बड़ी ताकत थी। कमलनाथ की रणनीति, नेताओं की एकजुटता और सिंधिया-दिग्विजय के प्रभाव ने पार्टी को 15 साल बाद सत्ता में ला दिया था। कमलनाथ पुराने-नये सभी नेताओं को साथ लेकर चले। पार्टी की एकता ही सबसे बड़ी ताकत है। कांग्रेस ने उस वक्त पूरे प्रदेश में हर तरफ अपना परचम फहराया।
गुटबाजी में बिखरी पार्टी
2018 के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वाकांक्षा और पार्टी में गुटबाजी ने सब बिखेर दिया। सिंधिया अपने समर्थक विधायकों सहित दलबदल कर बीजेपी में चले गए। इसी के साथ सत्ता कांग्रेस के हाथ से चली गयी। पार्टी में गुटबाजी जबरदस्त तरीके से फिर बढ़ गयी। सिंधिया के जाने के बाद पार्टी के कई बड़े नेता प्रदेश नेतृत्व को ही आइना दिखाते नजर आए। अजय सिंह और अरुण यादव की नाराजगी बार बार खुलकर सामने दिखी। 2023 के पहले कांग्रेस फिर से अपने एकजुटता वाले फॉर्मूले पर चलकर चुनाव मैदान में उतरने के लिए तैयार हो रही है।