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वैदिक ज्योतिष शास्त्र में इन नक्षत्रों को माना गया है बेहद अशुभ जानें मनुष्य जीवन पर इनका प्रभाव

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वैदिक ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का विशेष महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों में नक्षत्रों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। नक्षत्रों का अध्ययन करने के बाद ही ज्योतिषीय विश्लेषण किया जाता है। नक्षत्र के प्रभाव से किसी भी व्यक्ति का जीवन बदल सकता है। नक्षत्रों का जीवन पर अशुभ प्रभाव न पड़े इसी वजह से लोग उनसे संबंधित ग्रहों की पूजा-पाठ और कई तरह के उपाय करते हैं। आइये जानते हैं वैदिक ज्योतिष शास्त्र में किन नक्षत्रों को बेहद अशुभ माना गया है।

सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार नक्षत्रों की कुल संख्या 27 है। पुराणों के अनुसार 27 नक्षत्रों की पहचान राजा दक्ष प्रजापति की बेटियों के तौर पर है। पौराणिक काल में ऋषि मुनियों ने आसमान का विभाजन 12 भागों में कर दिया था, जिन्हें 12 अलग-अलग राशियों के नाम से जाना जाता है। इन राशियों के सूक्ष्म अध्ययन के लिए उन्होंने इसको 27 भागों में बांट दिया, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है। एक राशि के भीतर लगभग 2.25 नक्षत्र आते हैं। सभी नक्षत्रों के अपने शासक ग्रह और देवता होते हैं।

इन नक्षत्रों को माना गया है बेहद खराब

वैदिक ज्योतिष शास्त्र में आश्लेषा, मघा, कृतिका और भरणी नक्षत्र को सबसे अशुभ माना गया है। इन नक्षत्रों में किसी भी प्रकार के मांगलिक और शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। इस नक्षत्र में जन्में जातक का भविष्य सामान्य होता हैं और उसके भविष्य पर इस नक्षत्र का कोई बुरा प्रभाव नही पड़ता है। भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कृतिका नक्षत्र का स्वामी सूर्य ग्रह है। आश्लेषा नक्षत्र के स्वामी ग्रहों के राजकुमार बुध देव और मघा नक्षत्र का स्वामी केतु ग्रह है। इन खराब नक्षत्रों की वजह से बने बनाए काम भी बिगड़ जाते हैं।

डिसक्लेमर

इस लेख में दी गई जानकारी/ सामग्री/ गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ धार्मिक मान्यताओं/ धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें।

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