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फर्जी रजिस्ट्रार कार्यालय का मामला ठंडे बस्ते में, विभाग जांच कराना भी भूला

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मुरैना। जमीनों की फर्जी रजिस्ट्री के कई मामले तहसील, एसडीएम कार्यालयों से लेकर पुलिस थानो चल रहे हैं, लेकिन मुरैना शहर में प्रशासन की टीम ने ही जो फर्जी रजिस्ट्रार कार्यालय पकड़ा था, उस मामले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। यहां मिली संदिग्ध रजिस्ट्रियां किन जमीनों और किन लोगों की थीं, इसका पता अब तक नहीं लगा है। पंजीयक विभाग ने भी इस मामले में जांच बैठाई, लेकिन वह भी अब तक पूरी नहीं हो पाई है।

गौरतलब है, कि दिसंबर महीने मुरैना तहसीलदार कुलदीप दुबे ने फर्जी रजिस्ट्री के आधार पर एक जमीन का नामांतरण कर दिया था। शिकवे शिकायत और जांच के बाद फर्जी रजिस्ट्री पर हुए नामांतरण को रद्द कर दिया गया, इसके बाद फर्जी रजिस्ट्री करने वालों की तलाश शुरू हुई। 11 जनवरी गुरुवार को तहसीलदार ने चार पटवारियों व कोतवाली टीम के साथ गोपालपुरा की दीक्षित गली में एक मकान में चल रहा फर्जी रजिस्ट्रार कार्यालय पकड़ा था।

इस फर्जी रजिस्ट्रार कार्यालय में 40 नकली संदिग्ध रजिस्ट्रियां, रजिस्ट्रार कार्यालय के अधिकारी-कर्मचारी व शाखाओं के नाम की 25 से ज्यादा सीलें, टाइपराइटर, कईयों आधार कार्ड, वोटर कार्ड, स्टांप व रजिस्ट्री में उपयोग होने वाले कईयों तरह के फर्जी दस्तावेज पकड़े हैं।

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फर्जी रजिस्ट्री करने वाला मास्टरमाइंड लक्ष्मी नारायण उर्फ संजू कुलश्रेष्ठ है, जो मकान मालिक देवेंद्र भदौरिया के साथ यह फर्जीवाड़ा कर रहा था। करीब दस साल से यह लोग जमीनों की फर्जी रजिस्ट्रियां कर रहे थे। इतने समय में कितनी जमीनों का हेर-फेर किया? कौन-कौन लोग इनकी गैंग के शामिल हैं? यह जांच पूरी होने के बाद पता लगता। जांच पूरी न होना भी पुलिस व पंजीयक विभाग के अफसरों की भूमिका पर सवाल उठा रहा है।

रजिस्ट्रार कार्यालय के कर्मचारी भी संदेह के घेरे में

जमीनों की फर्जी रजिस्ट्री करने के इस अवैध धंधे में रजिस्ट्रार कार्यालय के कर्मचारियों के शामिल होने का पूरा शक है। ऐसा इसलिए क्योंकि फर्जी रजिस्ट्री करने वाले आरोपितों के यहां से रजिस्ट्रार कार्यालय की एक अंगूठ चिन्ह पंजी मिली हैं, जिसमें साल 2014 में जमीन की रजिस्ट्री कराने वालों के नाम, पते व उनके अंगूठों के निशान (फिंगर प्रिंट) हैं। रजिस्टर पर उप पंजीयक कार्यालय मुरैना लिखा हुआ है।

इसके अलावा साल 2014 का रजिस्ट्री ग्रंथ भी मिला है, जिसमें साल 2014 में हुई सभी रजिस्ट्रियों की जानकारी दर्ज है। रजिस्ट्री गुम होने पर रजिस्ट्री ग्रंथ के रिकार्ड से ही रजिस्ट्रार कार्यालय से दूसरी रजिस्ट्री निकलती है। रजिस्ट्रार कार्यालय के यह रिकार्ड किसी अधिकारी-कर्मचारी की सांठगांठ से ही फर्जी रजिस्ट्री करने वालों के पास आए हैं।

एफआइआर के बाद पुलिस की जांच भी ऐसे अधिकारी-कर्मचारी तक नहीं पहुंची और पंजीयक विभाग ने भी इस मामले में जांच बैठाई। उप रजिस्ट्रार कार्यालय के रिकार्ड प्रभारी को नोटिस भी जारी किया गया, लेकिन इस जांच व नोटिस के बाद पूरे मामले में लीपापोती हो गई।

जिन जमीनों के मालिक बाहर, उनकी होती थीं फर्जी रजिस्ट्री

फर्जी रजिस्ट्रार कार्यालय चलाने वाला संजू कुलश्रेष्ठ पहले रजिस्ट्रार कार्यालय में काम करता था, वहां से रजिस्ट्री की बारियां सीखा और फर्जी रजिस्ट्री का कारोबार शुरू कर दिया। संजू कुलश्रेष्ठ और देवेंद्र भदौरिया उन जमीनों को निशाना बनाते थे, जिनकी रजिस्ट्री 2015 से पहले हुईं। ऐसी जमीनों के मालिक जो नामांतरण नहीं करवा पाए, या फिर शहर से ही बाहर रह रहे हैं।

इन रजिस्ट्रियों की फर्जी रजिस्ट्री किसी ओर के नाम से करके तहसील से उसका नामांतरण करवाते थे और जमीन के असली मालिक को इसकी खबर ही नहीं लग पाती, कि उसकी जमीन की रजिस्ट्री व नामांतरण किसी और के नाम हो गया।

इसके अलावा लोगों के रुपये ऐंठकर भागी चिटफंड कंपनियों की जमीनों को भी संजू कुलश्रेष्ठ व उसकी टीम निशाना बनाती थी। चिटफंड कंपनियों ने मुरैना में कई जगह जमीनें खरीदीं, लेकिन उनका नामांतरण नहीं करवाया। यह कंपनी अब गायब है और इनकी जमीनें लावारिश हालत में है।

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