खराब लाइफस्टाइल और खान-पान में गड़बड़ी के चलते ज्यादातर लोग मोटापे का शिकार हो रहे हैं. अमेरिका के नेशनल हेल्थ इंस्टिट्यूट के मुताबिक, मोटापे होने के चलते हमारा शरीर डायबिटीज और दिल के रोगों का शिकार हो सकता है. अपने वजन को कम करने के लिए लोग तरह-तरह की डाइटिंग और वर्कआउट समेत तमाम चीजों को फॉलो करते हैं. इन्हीं में से इंटरमिटेंट फास्टिंग भी है. आजकल ये वेट लॉस करने वालों के बीच ये काफी ट्रेंड में हैं.
इंटरमिटेंट फास्टिंग को लेकर कई रिसर्च भी सामने आई हैं, जिसमें सामने आया है कि ये वजन कम करने के लिए प्रभावी है. लेकिन आखिर इंटरमिटेंट फास्टिंग क्या है और वेट कम करने के लिए ये कैसे प्रभावी है. आइए जानने की कोशिश करते हैं..
क्या है इंटरमिटेंट फास्टिंग
दरअसल, इंटरमिटेंट फास्टिंग में आप कुछ घंटों के लिए फास्टिंग करते हैं और फिर भोजन करते हैं. इस साइकिल को दाहराया जाता है. आपको बता दें कि यहां फास्टिंग का मतलब भूख से है.फास्टिंग से भूख का हार्मोन घटता और शरीर का मेटाबॉलिज्म बढ़ता है. इंटरमिटेंट फास्टिंग को फॉलो करने से धीरे-धीरे वजन कंट्रोल होने लगता है .
कई तरह की इंटरमिटेंट फास्टिंग
16/8 फास्टिंग- इंटरमिटेंट फास्टिंग का ये तरीका बेहद लोकप्रिय है. इसका मतलब है कि 16 घंटों का फास्ट और 8 घंटे आप भोजन कर सकते हैं. ध्यान रहे कि 16 घंटे की फास्टिंग के दौरान ठोस आहार न लें. डाइट में नींबू पानी जैसी लिक्विड चीजों को शामिल करें. इससे शरीर में किटोसिस बढ़ता है, जिससे वेट कम होता है.
5/2 फास्टिंग- इसका सीधा मतलब यही है कि हफ्ते के 5 दिनों में सामान्य खाना खा सकते हैं और बाकी के दो दिनों में लो कैलोरी भोजन खाना होगा. इस दौरान आप हरी सब्जियां या साबुत अनाज को डाइट में शामिल कर सकते हैं. इससे मेटाबॉलिज्म बढ़ता है.
ये लोग न करें फॉलो
किसी भी चीज की अती सेहत को खतरे में डाल सकती है. इंटरमिटेंट फास्टिंग पर भी यही नियम लागू होता है.टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों को इंटरमिटेंट फास्टिंग नहीं करनी चाहिए. शुगर के मरीज के लिए ये फास्टिंग नुकसान पहुंचा सकती है क्योंकि डॉक्टर इन लोगों लंबे समय तक खाली पेट नहीं रहने की सलाह देते हैं.