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सागर के बीना में जन्मे, भुसावल बम कांड में काटी कालापानी की सजा

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सागर: भारत की आजादी की लड़ाई में सागर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सदाशिवराव मलकापुरकर का योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी। कई बार जेल गए। कालापानी की सजा भी काटी। लेकिन उनके आजादी के इरादें कमजोर नहीं हुए। अंग्रेजों की यातनाएं सहीं। मगर पीछे नहीं हटे और लड़ाई लड़ते रहे।सदाशिवराव मलकापुरकर के रहली निवासी भतीजे हेमंतराव मलकापुरकर बताते हैं कि चाचा सदाशिवराव और मेरे पिता शंकरराव मलकापुरकर का जन्म सागर जिले के बीना में हुआ था। वहीं से वे पैतृक निवास रहली में रहने के लिए आए। रहली में रहकर पांचवीं तक की पढ़ाई पूरी की। जिसके बाद झांसी बड़ी बहन के घर चले गए। जीजा रेलवे में नौकरी करते थे। चाचा सदाशिवराव झांसी में रहकर पढ़ाई करने लगे। इंटर झांसी में ही की। पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात मास्टर रुद्रनारायण से हुई। रुद्रनारायण मास्टर पहले से ही चंद्रशेखर आजाद को जानते थे। पढ़ाई के समय चाचा सदाशिवराव, पिता शंकर राव और उनके साथ भगवानदास माहौर क्रांतिकारी थे। मास्टर रुद्रनारायण उन्हें पहचान गए और नि:शुल्क कोचिंग देने लगे। कुश्ती भी सिखाई। जिसके बाद उन्होंने चाचा और पिताजी को चंद्रशेखर आजाद से मिलवाया। आजाद हमेशा चाचा सदाशिवराव को सदू कहकर पुकारते थे। इसके बाद चाचा और पिताजी आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। हेमंतराव कहते हैं कि चाचा सदाशिवराव अक्सर उन्हें आजादी के किस्से सुनाते रहते थे।रहली में स्थित स्वंतत्रता संग्राम सेनानी सदाशिवराव मलकापुर का पैतृक मकान।भुसावल स्टेशन पर बम बनाने की सामग्री के साथ पकड़े गए थेउनके भतीजे ने बताया था कि एक बार चंद्रशेखर आजाद ने चाचा सदाशिवराव मलकापुरकर और भगवानदास माहौर को अकोला जाने का बोला और वहां किराये का मकान लेकर बम की फैक्ट्री डालने की बात कही। जिसके बाद वे दोनों अकोला जाने के लिए तैयार हुए। संदूकों में बम बनाने की सामग्री रखी। इसी दौरान आजाद ने सदाशिवराव को अपनी निजी रिवाल्वर और कारतूस दिए थे। आजाद अपनी रिवाल्वर का नाम “बम तुल बुखारा” रखे हुए थे। इसके बाद सदाशिवराव और भगवानदास सामान लेकर ट्रेन से अकोला के लिए रवाना हुए। भुसावल स्टेशन पर ट्रेन बदलने के लिए प्लेटफॉर्म पर उतरे। प्लेटफॉर्म पर चेकिंग चल रही थी। इनकी भी जांच शुरू हुई।पूछताछ हुई तो बताया कि संदूकों में आयुर्वेदिक दवाइयां रखी हैं। जबकि संदूकों में रिवाल्वर, कारतूस और बम बनाने की सामग्री रखी थी। संदूक खुलवाए गए तो रिवाल्वर तो जैसे-तैसे छिपा ली। लेकिन अंग्रेजों के हाथ कारतूस लग गए। जैसे ही पोल खुली तो दोनों लोग भागे। भागते समय भगवानदास माहौर का पैर पटरियां के बीच फंस गया और गिर गए। चाचा सदाशिवराव भागते हुए पुलिस चौकी के पास पहुंच गए। उन्हें घेरकर पकड़ लिया गया। जेल में डाल दिया गया। यह मामला उस समय भुसावल बम कांड के नाम से जाना जाता था। इसी प्रकरण में सदाशिवराव मलकापुरकर को कालापानी की सजा हुई थी। इसके अलावा सदाशिवराव को कई बार अलग-अलग मामलों में जेल हुई थी।सदाशिवराव के घर पर रहीं आजाद की मां, चंदू नाम से पुकारती थींभतीजे हेमंतराव मलकापुरकर ने बताया कि एक बार चाचा सदाशिवराव, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारी सातार नदी के पास घने जंगल में थे। यहां बातचीत में भगतसिंह ने आजाद से परिवार के बारे में पूछा तो वह उखड़ पड़े। बोले-आप सब मेरा परिवार हो। लेकिन कुछ दिन बाद चंद्रशेखर आजाद चाचा सदाशिवराव को लेकर अपने गांव भावरा लेकर पहुंचे। सदाशिवराव आजाद के बेहद करीबी और विश्वासपात्र थे। गांव में माता-पिता से उन्हें मिलवाया और कहा कि मैं न रहूं तो सदू (सदाशिवराव) तुम्हारी मेरी तरह ही देखभाल करेगा। इसी बीच 27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आजादी की शहादत हो गई। इस समय सदाशिवराव जेल में बंद थे। आजाद के शहीद होने के बाद चाचा सदाशिवराव जेल से बाहर आए। वे सीधे भावरा गांव पहुंचे और चंद्रशेखर आजाद की मां जगरानी से मिले। उन्हें अपने साथ अपने पैतृक निवास रहली लेकर आए। आजाद की मां चाचा सदाशिवराव को चंदू कहकर पुकारती थी। क्योंकि वे उन्हें अपने बेटे चंद्रशेखर आजाद की तरह ही मानती थी। रहली में करीब 3 साल तक रहीं। इस दौरान उन्होंने तीर्थयात्रा भी की। इसी बीच उनकी तबीयत बिगड़ी तो झांसी इलाज के लिए लेकर पहुंचे। जहां उनका निधन हो गया। निधन के बाद सदाशिवराव मलकापुरकर ने ही आजाद की मां को मुखाग्नि दी थी।आजाद के साथ घर में लगी है क्रांतिकारी सदाशिवराव मलकापुरकर की तस्वीर।सिपाहियों को देख जोर-जोर से धड़कने लगा था दिलआजाद अपने गांव भावरा सदाशिवराव मलकापुरकर को लेकर पहुंचे थे। एक दिन भावरा तहसील में अचानक सिपाहियों की आमद ज्यादा होने लगी। सिपाहियों की बढ़ती संख्या को देखकर सदाशिवराव को लगा कि कहीं अंग्रेजों के पता तो नहीं चल गया कि आजाद गांव में हैं। उन्होंने अपनी शंका आजाद को बताई। कहा कि आज तहसील में रोज की अपेक्षा ज्यादा सिपाही हैं। संध्या का समय था। रिमझिम बारिश हो रही थी। आजाद ने सोचा की अभी भावरा से निकल जाते हैं। लेकिन बारिश के बीच जाएंगे कहां? अंधेरा हो चुका था। उन्हें अपने घर खाना खाने जाना था। अम्मा इंतजार कर रही थीं। आजाद और सदाशिवराव घर की ओर बढे। अंधेरे में आगे का रास्ता साफ दिखाई नहीं दे रहा था। तभी दो-तीन आदमियों के बूट पहने मिले कदम से चलने की आवाज सुनाई दी। आजाद और सदाशिवराव खड़े हो गए। उन्हें धुंधला सा दिखाई देने लगा कि तीन सिपाही, जिनमें दो के कंधों पर बंदूकें थीं। सड़क से आ रहे हैं। आजाद ने तुरंत सदाशिवराव का हाथ पकड़ लिया। संकेत से कहा-दो। सदाशिवराव ने जेब से पिस्तौल निकालकर दे दी। आजाद ने पिस्तौल अपनी जेब में रख ली और सदाशिवराव से कहा कि तुम मेरे पीछे रहना। आजाद जेब में रखी पिस्तौल के ट्रिगर पर अंगुली रखे चले जा रहे थे और सदाशिवराव उनके पीछे। जैसे ही सिपाहियों ने उन्हें देखा तो पूछा कहां जा रहे हो। उन्होंने तपाक से जवाब दिया कि अपने पड़ोसी के घर जा रहे हैं। सदाशिवराव का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। लेकिन आजाद जरा भी नहीं घबराए और बात करते रहे। सिपाही उन्हें पहचान भी नहीं पाए और आजाद सदाशिवराव के साथ आगे बढ गए।क्रांतिकारी सदाशिवराव मलकापुर की भुसावल बम कांड के समय की तस्वीर।अंग्रेजों के डर से जंगल में पहाड़ी पर बिताई थी रातभावरा में अंग्रेज सिपाहियों की बढ़ी आमद और पकड़े जाने के संदेह में चंद्रेशखर आजाद और सदाशिवराव मलकापुरकर ने गांव के पास स्थित जंगल में पहाड़ी पर रात बिताने का तय किया। घने जंगल के बीच होते हुए पहाड़ पर पहुंचे। जहां महादेव की प्रतिमा स्थापित थी। यहीं रात बिताना अच्छा समझा। आजाद वहीं लेट गए और तुरंत खुर्राटे भरने लगे। लेकिन सदाशिवराव को नींद नहीं आ रही थी। इसी दौरान एक के बाद एक दो मोटर आने की लाइट दिखी। सदाशिवराव ने तुरंत आजाद को जगाया और कहा कि कहीं पुलिस को पता तो नहीं चल गया कि हम लोग यहां हैं। अलीराजपुर से दो मोटर आई हैं। जबाव में आजाद ने कहा कि देखा जाएगा। रात में तो कोई यहां आने का नहीं, सुबह देखा जाएगा और फिर खुर्राटे भरने लगे। सदाशिवराव को नींद नहीं आ रही थी। कभी पत्ता खटका तो सदाशिवराव घबरा जाते। सदाशिवराव पिस्तौल पर हाथ रखे रातभर जागते रहे। यह सोचते रहे कि यदि कोई इधर से आया तो क्या करूंगा और उधर से आया तो क्या करूंगा? इधर-उधर करवट बदलते रहे। इसी बीच सदाशिवराव को लगा कि उनका हाथ किसी रेंगती हुई चिकनी, मुलायम चीज पर पड़ गया। हड़बड़ा कर वे उठकर बैठ गए और आजाद को जगाया। बोले- उठो देखो सांप मालूम होता है। आजाद जाग तो गए पर उठे नहीं। अंधेरे में लेटे-लेटे ही हाथ से इधर से उधर टटोल कर बोले कि कहीं कुछ नहीं है सो जाओ। माचिस जलाकर देखा तो वहां कुछ नहीं था। जैसे-तैसे सबेरा हुआ और फिर सदाशिवराव आजाद के साथ बस स्टैड पहुंचे और वहां से निकल गए।जब अचानक कमरे में आ गए सदाशिवराव के बहनोईएक बार क्रांतिकारी सदाशिवराव मलकापुरकर के झांसी में बहनोई के मकान की अटारी के कमरे में चंद्रशेखर आजाद, भगवानदास माहौर बैठे थे। यहां आजाद दोनों लोगों को नई पिस्तौल और उसको चलाने, भरने आदि की बातें बता रहे थे। सदाशिवराव का करीब दो साल का भांजा अंदर बैठा था। वह सब देख रहा था। सभी किबाड़ बंद थे। अचानक सदाशिवराव के बहनोई वहां पहुंच गए। उन्होंने किबाड़ खोलने के लिए कहा। उनकी आवाज सुनकर आजाद ने तुरंत पिस्तौल तकिए के नीचे छिपा दी। किबाड़ खोले। जैसे ही सदाशिवराव के बहनोई कमरे में अंदर आए तो बच्चा तपाक से बोला कि काका बंदूक। बच्चे की बात सुन सदाशिवराव, आजाद और अन्य सुन्न रह गए। एक दूसरे का मुंह देखने लगे। तभी आजाद ने बात संभाली और बच्चे से बोले चलाओ बंदूक… चलाओ बंदूक…। खेल के अंदाज में कहीं उनकी बातों से मामला संभल गया और बच्चा खेल में उलझ गया। यदि उस दिन बहनोई को बंदूक मिल जाती तो सदाशिवराव पर कई पाबंदियां लग जाती और वे क्रांतिकारियों से न तो मिल पाते और न हीं कहीं जा पाते।क्रांतिकारी भगवानदास माहौर, शिव वर्मा के साथ सदाशिवराव।जेल में सदाशिवराव की प्लानिंग, माहौर ने कोर्ट परिसर में चलाई थी गोलियांभुसावल बम कांड में सदाशिवराव मलकापुरकर और भगवानदास माहौर गिरफ्तार हो गए। जेल भेजा गया। जलगांव अदालत में केस चला। उनके खिलाफ अप्रूवर जयगोपाल और फणीन्द्र घोष गवाही देने वाले थे। जेल में रहकर सदाशिवराव ने अप्रूवरों को मारने की प्लानिंग की और केस लड़ रहे वकील से मुलाकात की। उन्होंने अपनी प्लानिंग बताई और आजाद को संदेश देने का बोला। साथ ही कहा कि जेल में सिर्फ एक पिस्तौल उपलब्ध करा दें। फिर जो बनेगा वो करूंगा। आजाद ने सदाशिवराव की योजना जानकर मैसेज भेजा कि पिस्तौल भगवानदास चलाएंगे। जिसके बाद जेल के अंदर पिस्तौल भेजने की व्यवस्था की गई। सदाशिवराव के बड़े भाई शंकरराव मलकापुरकर 20 फरवरी 1930 को खाने के डिब्बे के साथ पिस्तौल दे आए। 21 फरवरी 1930 को जलगांव सेशन कोर्ट में भगतसिंह के केस के अप्रूवरों की गवाही होने वाली थी। वहीं सदाशिवराव और भगवानदास का केस चल रहा था। उन्हें कोर्ट ले जाया गया। तय प्लान के अनुसार भगवानदास माहौर के कोट की जेब में पिस्तौल रखी थी। अप्रूवरों की गवाही हुई और वे बाहर आए। काफी सुरक्षा के बीच उन्हें रखा गया था। कोर्ट के बाहर मौका पाते ही भगवानदास माहौर ने पिस्तौल निकाली और जयगोपाल और फणीन्द्र पर एक-एक गोली दाग दी। दोनों कुर्सियों से नीचे गिर गए तो उन्होंने सोचा की काम हो गया। इसी दौरान भगवानदास की पिस्तौल जाम हो गई। जिसके बाद सिपाहियों ने उन्हें पकड़ लिया। सदाशिवराव दूर बैठे-बैठे सारा माजरा देख रहे थे। हालांकि गोली लगने के बाद भी जयगोपाल और फणीन्द्र की जान बच गई थी।रहली में सदाशिवराव की नहीं है प्रतिमासागर जिले के रहली में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सदाशिवराव मलकापुर का पैतृक मकान आज भी है। इस मकान में उनके भतीजे यानी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बड़े भाई शंकर राव मलकापुरकर के बेटे हेमंतराव मलकापुरकर परिवार के साथ रहते हैं। मकान के बाहर एक बोर्ड लगाया गया है। जिसमें सदाशिवराव की वीरगांथा का उल्लेख है। इस बोर्ड पर लिखे अक्षर भी मिटने लगे हैं। रहली नगर में अब तक न तो सदाशिवराव की कोई प्रतिमा बनवाई गई है और न ही कोई यादगार काम किया गया है। भतीजे हेमंतराव कहते हैं कि चाचा और पिताजी ने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की कई यातनाएं सहीं और लड़ाई लड़ी। लेिकन उनकी याद में उनके पैतृक निवास रहली में कोई काम नहीं किया गया है, जो होना चाहिए।

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