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योगी आदित्यनाथ को क्लीन चिट देकर अखिलेश यादव एहसान नहीं थोप सकते

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रामपुर, अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) उपचुनावों में भी वैसे ही कैंपेन कर रहे हैं जैसे विधानसभा चुनाव 2022 में कर रहे थे. ऐसा सिर्फ मैनपुरी उपचुनाव के मामले में भी नहीं है, रामपुर में तो वो और भी आक्रामक नजर आये हैं – और उनकी बातों से लगता है कि वो बीजेपी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को अब भी उसी अंदाज में धमका रहे हैं.

रामपुर पहुंचे योगी आदित्यनाथ पहले की तरह धमकाने के बजाय नसीहत देते नजर आते हैं. निशाने पर तो जाहिर है आजम खान (Azam Khan) ही हैं, लेकिन योगी आदित्यनाथ के हमले का दायरा अखिलेश यादव तक भी होता है.

योगी आदित्यनाथ कहते हैं, ‘बदजुबानी दुर्गति कराती है, वक्त सबको सुधार देता है.’ वो किसी का नाम नहीं लेते. फिर भी उनकी बात मंजिल तक पहुंच जाती है. विधानसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ कहा करते थे, 10 मार्च के बाद सबकी गर्मी ठंडी कर दी जाएगी. लगता है, अब योगी आदित्यनाथ को वैसी जरूरत नहीं रही.
रामपुर में ही अखिलेश यादव का कहना रहा, हमें इतना मजबूर मत करो कि भविष्य में जब हमारी सरकार आये तो आपके खिलाफ भी वही कार्रवाई करें जो आप आजम खान के साथ कर रहे हो. रामपुर के लोगों से अखिलेश यादव 5 दिसंबर को होने जा रहे उपचुनाव में आजम खान के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ वोट देने को अपील कर रहे हैं.

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आजम खान के बहाने अखिलेश यादव को भी योगी आदित्यनाथ अपनी तरफ से सलाह दे रहे हैं. कहते हैं, सपा के एक नेता लगातार कह रहे हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ… ये गुमराह करने वाला वक्तव्य है… व्यक्ति के कारनामे उनके कार्यों की सजा दे रहे हैं.

अखिलेश यादव, आजम खान के मामले को भी वैसे ही पेश कर रहे हैं जैसे चुनावों के दौरान या उससे पहले माफिया और दूसरे लोगों के खिलाफ बुलडोजर एक्शन को लेकर किया करते थे. ये अखिलेश यादव ही हैं जो चुनावों में एक रिपोर्ट का हवाला देकर योगी आदित्यनाथ को बुलडोजर बाबा बता डाला था – और ये बात समाजवादी पार्टी के हार के ताबूत की आखिरी कीलों में से एक साबित हुई.

अब बिलकुल उसी तरीके से योगी आदित्यनाथ सरकार को अखिलेश यादव अपनी ओर से चेतावनी दे रहे हैं, सरकार में जो लोग हैं वे नहीं माने तो समाजवादी पार्टी जब सत्ता में आएगी तो वो भी जैसे को तैसा ही जवाब देंगे. पहले अखिलेश यादव कहा करते थे कि अगर योगी सरकार ने उनके लोगों के खिलाफ बुलडोजर चलाना बंद नहीं किया तो सरकार बनाने के बाद वो भी बीजेपी वालों के साथ ठीक वैसा ही सलूक करेंगे – चूंकि अखिलेश यादव चुनाव हार गये इसलिए ये नौबत ही नहीं आयी. अब तो बदला लेने के लिए पांच साल इंतजार के अलावा कोई रास्ता बचा है नहीं.

और फिर बातों बातों में अखिलेश यादव ये भी याद दिला देते हैं कि जब वो मुख्यमंत्री थे तो एक बार योगी आदित्यनाथ के खिलाफ केस की फाइल उनके सामने भी लाई गयी थी, लेकिन वो लौटा दिये – क्योंकि वो नफरत की सियासत में यकीन नहीं रखते हैं.

अखिलेश ने एक्शन क्यों नहीं लिया?

रामपुर विधानसभा उपचुनाव हो या खतौली उपचुनाव, अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी लोक सभा उपचुनाव जितना ही अहमियत रखता है. मैनपुरी से पत्नी
डिंपल यादव के चुनाव लड़ने के कारण भावनात्मक लगाव थोड़ा ज्यादा हो सकता है, लेकिन एक साथ आजमगढ़ और रामपुर लोक सभा सीट हाथ से निकल जाने के बाद अब तो सारी ही सीटें हद से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी हैं.

एक दिन अखिलेश यादव को ये भी बताना पड़ेगा कि योगी आदित्यनाथ केस की फाइल 2014 के पहले सामने आयी थी, या फिर उसके बाद?

रामपुर में अखिलेश यादव चाहते हैं कि समाजवादी पार्टी को लोग आजम खान से सहानुभूति रखते हुए वोट दें. लेकिन रामपुर लोक सभा उपचुनाव के नतीजे भरोसा अपनेआप कम कर दे रहे हैं. रामपुर लोक सभा सीट पर जब उपचुनाव हो रहे थे तो आजम खान जेल से बाहर आ चुके थे – माना तो यही गया कि सपा उम्मीदवार का टिकट भी आजम खान ने ही फाइनल किया था.

रामपुर विधानसभा सीट पर तो उपचुनाव आजम खान की सदस्यता रद्द हो जाने की वजह से हो रही है, लेकिन रामपुर लोक सभा सीट तो उनके विधानसभा चले जाने से ही खाली हुई थी. असल में एक केस में दो साल की सजा हो जाने के चलते आजम खान की सदस्यता रद्द हो गयी थी.

अब अखिलेश यादव इसे आजम खान के साथ किये जा रहे अन्याय के तौर पर पेश कर रहे हैं. आपको याद होगा, आजम खान के जेल में रहते अखिलेश यादव पर आरोप लगाये जा रहे थे कि वो बिलकुल भी ध्यान नहीं दे रहे हैं – एक बार तो ऐसा माहौल बना कि लगा सारे मुस्लिम विधायक समाजवादी पार्टी तोड़ कर अपनी अलग पार्टी बाना लेंगे. जब आजम खान जेल से रिहा हुए तो अखिलेश यादव ने पार्टी से दो नेताओं को भेजा जरूर था. कहने को तो शिवपाल यादव भी रिहाई के वक्त पहुंचे थे, लेकिन तब उनकी घरवापसी नहीं हुई थी. बाद में अखिलेश यादव भी मिले जब आजम खान अस्पताल में भर्ती हुए थे.

चुनाव कैंपेन के तहत अखिलेश यादव अपनी सरकार के वक्त के एक वाकये का जिक्र करते हैं, ‘जो लोग अन्याय कर रहे हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि मुख्यमंत्री की फाइल मेरे पास आई थी. फाइल में कहा गया था कि उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाना चाहिये और उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिये.’

और फिर ये समझाने की कोशिश करते हैं कि वो चाहते तो सख्त से सख्त एक्शन ले सकते थे, ‘लेकिन हम नफरत और प्रतिशोध की राजनीति में शामिल नहीं है… हमने फाइल वापस कर दी… अब हमें इतना सख्त मत करो कि जब हम सत्ता में आएं तो हम वही करें जो आप हमारे साथ कर रहे हैं.’

अपनी बात को सही बताने के लिए अखिलेश यादव कहते हैं कि लोग चाहें तो अधिकारियों से उनकी बातों की तस्दीक कर सकते हैं. अखिलेश यादव का इशारा उन लोगों की तरफ रहा जो आज सरकार में हैं. मतलब, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी.

लगे हाथ, अखिलेश यादव अपने समर्थकों को भरोसा और राजनीतिक विरोधियों को ताकीद भी करते हैं – हमारे खराब दिन जरूर हैं, लेकिन अच्छे दिन आएंगे.

योगी आदित्यनाथ से जुड़ी जिस फाइल का जिक्र अखिलेश यादव कर रहे हैं, वो उस दौर का मामला है जब उनके पिता मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. मामला 2007 का है जब दंगा हुआ था और कर्फ्यू लागू था. तब योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद रहे और कर्फ्यू का उल्लंघन कर समर्थकों के साथ बाहर निकल पड़े – और पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. रिहा होने के बाद जब योगी आदित्यनाथ संसद पहुंचे तो अपनी पीड़ा सुनाते रो पड़े थे.

अब सवाल ये है कि क्या अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी की ही सरकार में मुलायम सिंह यादव के फैसले को लेकर कोई अफसोस हो रहा है? या योगी आदित्यनाथ केस की फाइल लौटाते वक्त किसी बात का डर था? कहीं अखिलेश यादव को ये तो नहीं लगा था कि उनकी ही सरकार का वो कदम गलत रहा – और आगे से वो मुलायम सिंह यादव वाली गलती नहीं दोहराना चाहते थे?

अखिलेश यादव ने ये नहीं बताया है कि योगी आदित्यनाथ केस की फाइल अफसरों ने उनके सामने कब लायी थी? कहीं ये 2014 के बाद का मामला तो नहीं है? क्योंकि 2014 में केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बन गयी थी – और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री.

अव्वल तो अखिलेश यादव को एक्शन लेना चाहिये था. अगर योगी आदित्यनाथ को वो दोषी मान रहे थे तो केस के साथ आगे बढ़ना चाहिये था. अदालत में आगे बढ़ कर केस की ठीक से पैरवी करनी चाहिये थी. जिस तरह से अखिलेश यादव फाइल लौटाने की बात कर रहे हैं, सुन कर तो ऐसा लगता है जैसे उनको लगा होगा कि योगी के साथ नाइंसाफी हुई थी.

अखिलेश यादव के तब के फैसले और अभी की बातों से तो ऐसा ही लगता है जैसे वो अपनी तरफ से योगी आदित्यनाथ को क्लीन चिट दे चुके हों – लेकिन फिर सवाल ये भी उठता है कि अब एहसान क्यों थोप रहे हैं?

अगर फाइल लौटाने की बात कर अखिलेश ये जताना चाह रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ के गलत होने के बावजूद वो बख्श दिये तो ये तो और भी गंभीर बात है. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ कर क्या वो यही सब किया करते रहे?

अगर योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव की नजर में दोषी थे तो सजा दिलाने की कोशिश करनी चाहिये थी. फैसला तो अदालत को करना था, लेकिन वो तो अपना काम कर ही सकते थे – आखिर ये घालमेल कर अब वो क्या समझाने की कोशिश कर रहे हैं?

आजम खान का मामला अलग है

अखिलेश यादव तो रामपुर के लोगों को ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार को भी आजम खान के केस की फाइल वैसे ही लौटा देनी चाहिये जैसे उनकी सरकार ने किया था – लेकिन आजम खान को तो अदालत से सजा हुई है.

बराबरी में तो दोनों मामलों को तब पेश किया जा सकता था, जब अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ की फाइल लौटाई नहीं होती और अफसरों को अदालत में पैरवी करने के लिए कहे होते.

पुलिस का गिरफ्तार कर किसी को जेल भेज देना अलग बात होती है, और किसी केस में अदालत से सजा मिलना बिलकुल अलग.

बीजेपी उम्मीदवार के लिए वोट मांगने रामपुर पहुंचे योगी आदित्यनाथ कहते हैं, निर्णय न्यायालय दे रही तो सरकार और पार्टी पर दोषारोपण ठीक नहीं है… वे स्वास्थ्य का ख्याल रखें.’

योगी आदित्यनाथ कहते हैं, ‘सपा जब चुनाव हारती है तो पहले चुनाव आयोग, फिर ईवीएम, प्रशासन और पुलिस कर्मियों को दोषी ठहराती है… अपने कारनामों को नहीं… यदि जनता से माफी मांगते तो रहम मिलता… जनता जानती है कि ये सुधरेंगे नहीं… जिनकी आदत बिगड़ चुकी होती है, उन्हें सुधरने में समय लगता है – लेकिन वक्त सबको सुधार देता है.’

देखा जाये तो योगी आदित्यनाथ और आजम खान के केस बिलकुल अलग अलग हैं – और अखिलेश यादव अगर योगी आदित्यनाथ से एहसान का बदला चुकाने की बात करते हैं तो पहले अपना स्टैंड साफ करना पड़ेगा – कि वो फाइल क्यों लौटाये थे?

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