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नीतीश कुमार क्यों मुस्लिमों से लगातार हो रहे मुखातिब, आखिर जेडीयू को क्या डर सता रहा?

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बिहार की सियासत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की जंग लड़ रहे हैं. बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर 2024 के लोकसभा चुनाव मैदान में उतरे नीतीश कुमार अपनी हर एक सभा में मुस्लिम समुदाय को 2005 से पहले का बिहार याद दिला रहे हैं. मुस्लिम से राजनीतिक भटकाव से बचने और एनडीए को वोट देने की अपील कर रहे हैं. इतना ही नहीं सीएम नीतीश अपने राज में मुसलमानों के लिए किए गए कार्यों को भी गिना रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि नीतीश कुमार अपनी हर रैली में मुस्लिम समाज से गुहार लगा रहे हैं?

लोकसभा चुनाव घोषणा के बाद बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली रैली 4 अप्रैल को जमुई के बल्लोपुर मैदान में हुई. इस दौरान सीएम नीतीश ने पीएम मोदी की मौजूदगी में कहा कि पहले बिहार में हिंदू-मुस्लिम का भी झगड़ा होते रहता था. जब हम लोग आ गए तो हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा भी खत्म हो गया. मुस्लिम समुदाय के लोगों से भी कहेंगे कि भूलिएगा मत कि हम लोग जब तक हैं झगड़ा नहीं. गलती करके फिर उसी को वोट मत दे दीजिएगा नहीं तो झगड़ा शुरू करा देगा.

नीतीश मुस्लिम वोटों को लेकर चिंतित!

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सीएम नीतीश ने शेखपुरा में भी मुसलमानों से एनडीए के उम्मीदवार को वोट देने की अपील की और यह दावा किया कि एनडीए के शासनकाल में मुसलमानों की तरक्की हुई. उन्होंने कब्रिस्तानों की घेराबंदी की बात भी याद दिलाई. साथ ही दावा किया कि उनके शासनकाल में आठ हजार कब्रिस्तानों की घेराबंदी कराई गई और अब 60 वर्ष पुराने मठ-मंदिरों की भूमि की भी घेराबंदी करने का काम शुरू किया है. नीतीश अपनी हर एक रैली में इसी बात को दोहरा रहे हैं.

लोकसभा चुनाव के कारण आचार संहिता लागू है, जिसकी वजह से इस बार नीतीश कुमार की तरफ से इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं किया गया, लेकिन उन्होंने ईद के मौके पर नमाजियों से मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने कई मुस्लिमों घरों में जाकर ईद की मुबारकबाद दियाऔर सेवई खाई. हालांकि, नीतीश कुमार पहली बार यह सब कुछ नहीं कर रहे हैं बल्कि इससे पहले भी मस्जिद, मजार और खानकाह जाते रहे हैं. मुस्लिम संस्थाओं के लोगों से मिलने-जुलने और टोपी पहनने से नीतीश ने परहेज नहीं किया, लेकिन बीजेपी से तीसरी बार हाथ मिलाने के बाद नीतीश को मुस्लिम वोटों को लेकर चिंतित है.

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू के लोगों को लगता है कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय न केवल बीजेपी उम्मीदवारों को वोट देगा बल्कि जेडीयू समेत एनडीए के अन्य सहयोगी दलों के उम्मीदवारों से भी दूरी बनाए रखेगा. बिहार में मुस्लिम वोट इंडिया गठबंधन के पक्ष में एकजुट नजर आ रहा है, जिसका एहसास नीतीश कुमार को हो गया है. उन्हें लग रहा है कि मुस्लिम समुदाय उनके बीजेपी के साथ मिल जाने के कारण छिटक सकता है.

कैसे जेडीयू से मुस्लिमों का हुआ मोहभंग?

मुस्लिम एकमुश्त वोट अगर इंडिया गठबंधन को देता है तो जेडीयू के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं. इसकी वजह यह है कि जेडीयू के खाते में मुस्लिम प्रभाव वाली कई सीटें आई हैं, जिसमें किशनगंज से लेकर पूर्णिया तक शामिल है. हालांकि, नीतीश कुमार पहले भी बीजेपी के साथ रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मुसलमानों का नीतीश कुमार से मोहभंग हुआ है. इसके चलते ही नीतीश कुमार ज्यादा चिंतित हैं और अशांकित दिख रहे हैं और अपनी हर एक सभा में मुस्लिमों से वोट देने की अपील कर रहे हैं.

बिहार में 17 फीसदी मुस्लिम मतदाता है, जो कई लोकसभा सीटों पर सियासी दलों का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. आजादी के बाद कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है, लेकिन लालू यादव के राजनीतिक उद्भव के बाद आरजेडी के साथ जुड़ गया. 2005 में नीतीश के सत्ता में आने के बाद मुस्लिमों का एक तबका जेडीयू के साथ भी जुड़ा. सीमांचल के इलाके की सीटों पर 40 से 55 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता है. इसके अलावा शिवहर, मधुबनी, दरभंगा, सिवान, झंझारपुर, पश्चिमी चंपारण जैसी सीटों पर मुस्लिम वोट अहम है.

2005 से लेकर 2010 तक के चुनाव में नीतीश कुमार बखूबी जानते हैं कि उन्हें मुस्लिम वोट करते रहे हैं. इतना ही नहीं उनकी वजह से बीजेपी के उम्मीदवारों को भी मुस्लिम वोट मिलता रहा. 2015 में जब नीतीश ने लालू प्रसाद के साथ हाथ मिला लिया तब तो मुसलमानों ने उनकी पार्टी को भरपूर समर्थन दिया, लेकिन बात तब बिगड़ी जब जेडीयू ने आरजेडी से अलग होकर 2017 में बीजेपी से दोबारा हाथ मिलाया. इसके बाद से मुस्लिमों ने नीतीश से दूरी बना ली. 2020 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों ने तो उनकी पार्टी को वोट नहीं ही दिया, जिसके चलते जेडीयू 43 सीटों पर सिमट गई थी.

नीतीश ने सिर्फ एक सीट पर उतारा मुस्लिम उम्मीदवार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब दोबारा से बीजेपी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव मैदान में उतरे हैं, जिसके चलते मुस्लिमों के हमदर्द बनने की कोशिश में जुटे हैं. बिहार में नीतीश कुमार ने अपने कोटे की 16 सीटों में से सिर्फ एक सीट किशनगंज में मुजाहिद आलम को उम्मीदवार बनाया है. इसके अलावा एनडीए से कोई दूसरा मुस्लिम कैंडिडेट नहीं है, जबकि 2019 में एनडीए ने दो मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें एक जेडीयू ने उतारा था तो दूसरा एलजेपी से था.

वहीं, दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन में देखें तो आरजेडी ने महज दो सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें अररिया से शहनवाज आलम और मधुबनी से अशरफ अली फातमी हैं. इसके अलावा कांग्रेस ने किशनगंज से मो. जावेद और कटियार से तारिक अनवर को टिकट दिया है. लालू यादव की पार्टी इससे पहले तक चार से पांच टिकट मुस्लिमों को देती रही है, लेकिन पहली बार इतनी कम टिकट मुस्लिमों को दी हैं. ऐसे में नीतीश कुमार मुस्लिमों को साधकर अपने सियासी वर्चस्व को बिहार में बनाए रखना चाहते हैं, जिसके लिए लगातार मुस्लिमों को अपने राज में किए गए कार्यों की याद दिला रहे हैं.

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