जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 09 नवम्बर :: आस्था का महापर्व छठ में जाति-धर्म, ऊंच-नीच का भेदभाव भूल कर लोग गाँव-शहर के गली-मोहल्ले, नदी-तलाब तक जाने वाले रास्तों की सफाई में और सजावट में लोग खुद ही श्रमदान में लग जाते हैं। उक्त बातें जदयू कलमजीवी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ प्रभात चंद्रा ने बताई। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण अब थम गया है लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। इसलिए छठ महापर्व के अवसर पर नदी, तालाब घाटों पर होने वाली भीड़भाड़ को देखते हुए कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए स्वयं सजग रहने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि प्रशासन इस सम्बंध में प्रचार-प्रसार कर रहा ताकि पुनः बीमारी अपना पैर नही पसार सके। डॉ चंद्रा ने लोगो से अनुरोध किया है कि घाट पर वही श्रद्धालु जाये, जिन्होंने कोरोना से बचाव का कम से कम एक टीका (वैक्सीन) ले लिया हो। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार प्रशासन को निदेश दिया है कि छठ पर्व के दौरान सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित करायी जाय और लोगों को जागरूक करने के लिए स्थानीय स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जाय। डॉ प्रभात चंद्रा ने स्थानीय कई संस्थानों से अपने प्रकोष्ठ के पदाधिकारियों के साथ समन्वय किया और संस्थानों के कठिनाइयों को दूर करने में सहभागी बने। उन्होंने ने अपने प्रकोष्ठ के पदाधिकारियों को निदेश दिया कि जिनके घर पर छठ पर्व नही हो रहा है वे अपने मोहल्ले में लोगो के साथ मिलकर व्रतधारी को कठिनाई नहीं हो इसमें सहभागी बने। डॉ चंद्रा ने बताया कि छठ व्रत की अनेक कथाएं प्रचलित हैं, जिसमे एक कथा यह भी है कि जब पांडव अपना सम्पूर्ण राजपाट जुए में हार गया था, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुई थी और पांडवों को राजपाट वापस मिला था । जबकि लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगौलीय अवसर है । उस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (ultra violet rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। जिसके कारण संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य होता है यह परम्परा में है। सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के कारण धूप से हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ ही होता है और हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव होता है । उन्होंने बताया कि छठ व्रत में पहले दिन सैंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में लिया जाता है । अगले दिन से उपवास आरंभ होता है । इस दिन रात में खीर बनता है । व्रतधारी रात में यह प्रसाद ग्रहण करते हैं और इसी समय से व्रतधारी का निराजली पर्व शुरू हो जाता है। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर जलग्रहण (शरबत) कर व्रत खोलते (पारण) हैं । इस पूजा में पवित्रता का पूर्ण ध्यान रखा जाता है।
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