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संघ प्रमुख मोहन भागवत बोले- हमें किसी का मतांतरण नहीं कराना है वरन जीने का तरीका सिखाना है

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बिलासपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख डा. मोहन भागवत ने शुक्रवार को बिना नाम लिए मिशनरियों पर निशाना साधते हुए कहा कि हमें किसी का मतांतरण नहीं करवाना है, बल्कि जीने का तरीका सिखाना है। ऐसी सीख सारी दुनिया को देने के लिए हमारा जन्म भारत भूमि में हुआ है। हमारा पंथ किसी की पूजा पद्धति, प्रांत और भाषा बदले बिना अच्छा मनुष्य बनाता है। कोई किसी को बदलने या मतांतरण की चेष्टा न करें। सबका सम्मान करें

सबमें आनी चाहिए भावनात्‍मक एकता

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आरएसएस प्रमुख डा. मोहन भागवत शुक्रवार को छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के मदकूद्वीप में आयोजित घोष शिविर को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि देव दीपावली के अवसर पर मैं हरिहर क्षेत्र में हूं। हम सबमें भावात्मक एकता आनी चाहिए। हमारी आवाज अलग-अलग हो सकती है। रूप अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन, सुर एक होना चाहिए। हम सबका मूल एक आधार पर टिका है।

धर्मपरायणता का पढ़ाया पाठ

संघ प्रमुख डा. भागवत ने धर्म ग्रंथों में उल्लेखित बातों का उल्लेख करते हुए कहा कि सदियों से यह चला आ रहा है कि हम पराई स्त्री को माता मानते हैं और दूसरे का धन संपदा हमारे लिए कीचड़ के समान है। हमको खुद जिस बात से बुरा लगता है, हम दूसरों के साथ वैसा व्यवहार कतई नहीं करते। हमारे अपने नागरिक अधिकार हैं। संविधान की प्रस्तावना है। हमारे नागरिक कर्तव्य भी हैं। इन सभी बातों को हमें गंभीरता के साथ लेना चाहिए।

विविधता में एकता ही देश की सुंदरता

भागवत ने कहा कि हमारे अपने कर्तव्य, हमारे अपने अधिकार, ये सारी बातें हमें एक ताल में चलने और मिल-जुलकर रहने की सीख देती हैं। संघ प्रमुख ने जोर देकर कहा कि एकता होगी तभी हम एक होंगे। हमारे यहां विविधता में एकता है। अनेकभाषाएं, अनेक देवी-देवता, खानपान, रीति-रिवाज अनेक प्रांत, जाति, उपजाति हैं। यह एक देश को सुंदर बनाते हैं।

सत्य के मामले में हम शिखर पर

भागवत ने वाद्य यंत्रों में सबसे छोटे वेणु के विषय में कहा कि वह दिखने में सबसे छोटा है। फूंक मारकर देखिए। कितनी शक्ति की जरूरत होती है। सुमधुर आवाज के लिए साधना की जरूरत होती है। ऐसी ही साधना और परिश्रम से संगीत का निर्माण होता है। सुमधुर संगीत, साधना और परिश्रम के बल पर ही हम भारतवासी सत्य के मामले में शिखर पर पहुंचे हैं।

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