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क्या प्रशांत किशोर के साथ मिलकर ममता बनर्जी कर रही हैं मिशन 2024 की तैयारी?

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मुंबई में राकांपा नेता शरद पवार से मुलाकात के बाद पश्चिम बंगाल की तेज-तर्रार नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस कथन कि अब यू.पी.ए. नहीं है, के बाद विपक्ष की राजनीति गरमा गई है और इसमें आग झोंकी है राहुल गांधी पर निशाना साधते उनके एक और बयान ने कि राजनीति विदेश से नहीं होती। पश्चिम बंगाल में भाजपा को करारी शिकस्त देने और वाम दलों के साथ कांग्रेस को शून्य पर पहुंचा देने के बाद ममता के हौसले बुलंद हैं। उनके सपनों को पंख लग गए हैं। उन्हें पता है कि पश्चिम बंगाल में उन्हें कोई खतरा नहीं है। उनके दिल्ली दौरे भी बढ़े हैं। हाल के दौरे में तो वह यू.पी.ए. और कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से मिलीं भी नहीं, और अब वह मुंबई में हैं। मुंबई जाने से पहले के हफ्तों में उन्होंने सुष्मिता देव, अशोक तंवर (हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष), पूर्व सांसद कीर्ति आजाद आदि को अपने पाले में कर लिया है।

ममता बनर्जी की कांग्रेस से पुरानी अदावत है। तृणमूल कांग्रेस बनाने से पहले वह कांग्रेस में ही थीं, लेकिन बेआबरू होकर उन्हें पार्टी छोडऩी पड़ी थी। हाल ही के विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस का समर्थन चाहती थीं जो नहीं मिला, पर कांग्रेस भी पश्चिम बंगाल में शून्य पर सिमट गई। अब जब कांग्रेस केंद्र के साथ-साथ राज्यों में भी अपनी ताकत खोती जा रही है तो विपक्ष के नेतृत्व का उसका दावा भी कमजोर पड़ चुका है। ममता बनर्जी इस मौके को लपक लेना चाहती हैं और खुद को भाजपा के खिलाफ विपक्ष के केंद्रीय चेहरे के तौर पर उभारने में लग गई हैं। खुद को मजबूत करने के लिए पश्चिम बंगाल के बाहर अपना विस्तार कर रही हैं और दूसरे दलों के नेताओं को तृणमूल में शामिल करा रही हैं जिसमें सर्वाधिक कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं। मेघालय और गोवा में तो पूरी कांग्रेस ही तोड़ ली। एन.सी.पी. अध्यक्ष शरद पवार को अपने साथ जोडऩे में लगी हैं। ममता के इन बयानों के पीछे पी.के. (प्रशांत किशोर) की रणनीति भी मानी जा रही है। पी.के. ममता के सलाहकार तो हैं ही, पवार से भी उनके काफी अच्छे रिश्ते हैं। कांग्रेस में एंट्री और भाव न मिलने को लेकर वह नाराज भी काफी हैं, पर यह भी सच है कि यू.पी.ए. 2014 के बाद से निष्क्रिय है। जब तक सरकार रही, सक्रियता रही।

उधर सोनिया गांधी की अस्वस्थता के बाद यह माना जा रहा था कि सोनिया गांधी यू.पी.ए. की अध्यक्षता के लिए विपक्ष के किसी प्रभावी नेता (ममता या पवार) को आमंत्रित करेंगी, पर ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस के हालात खराब ही हुए। दिल्ली और आंध्र के बाद पश्चिम बंगाल तीसरा ऐसा राज्य हो गया है जहां कांग्रेस का कोई विधायक तक नहीं है। यू.पी.ए. के बाकी नेता भी गठबंधन के सक्रिय नहीं होने से काफी नाराज चल रहे हैं।  ममता बनर्जी पूर्णकालिक राजनेता हैं जिसका कांग्रेस में शीर्ष पर बैठे नेताओं में पूर्णत: अभाव दिखता है। इसीलिए बिना नाम लिए ममता बनर्जी जब कहती हैं कि राजनीति में निरंतरता आवश्यक है। अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव और स्टालिन जैसे विरोधी दलों के युवा नेताओं में भी ममता जैसा जुझारूपन लाना होगा, लेकिन ममता भी अभी विपक्ष के दूसरे दलों में स्वीकार्य हैं, यह देखना होगा।

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