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नई दिल्ली| शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने सोमवार को कहा कि बलात्कारी गुरमीत राम रहीम को सत्तापक्ष द्वारा बार-बार पैरोल दिए जाने से क्षेत्र में सांप्रदायिक वैमनस्य फैल रहा है। हरसिमरत कौर ने संसद के बजट सत्र की पूर्व संध्या पर सर्वदलीय बैठक में अपने विचार रखते हुए कहा, “कानून सबके के लिए बराबर होना चाहिए। जिस तरीके से बलात्कारियों और हत्यारों को पैरोल और छूट दी जा रही है, वह परेशान करने वाला है।”

उन्होंने कहा, “सिख समुदाय आहत है कि जब यह सब हो रहा है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2019 में गुरु नानक देव की 550वीं जयंती समारोह में सभी सिख बंदियों (बंदी सिंह) को मुक्त करने के लिए किया गया वादा तब तक पूरा नहीं किया गया है। समुदाय सवाल अब कर रहा है कि एक बलात्कारी को हर कुछ महीनों के बाद बार-बार पैरोल दिया जाता है, जबकि बंदी सिखों को 30 साल तक बिना पैरोल के और जेल की सजा पूरी होने के बाद भी जेल में रखा गया है।”

हरसिमरत ने कहा, “एक धारणा बन गई है कि गुरमीत राम रहीम को तरजीह देने से चुनाव में राजनीतिक लाभ उठाया जा सकता है। जिस तरह से राम रहीम ‘सत्संग’ कर रहे थे, वह भी इस आशय का संकेत देता है।”

बठिंडा की सांसद ने जोर देकर कहा, “इस कदम से बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ पहल पटरी से उतर जाएगी, इसके अलावा नागरिक समाज में एक गलत संदेश भी जा रहा है।”

सिंधु जल संधि पर फिर से बातचीत की केंद्र सरकार की पहल के मुद्दे पर हरसिमरत ने कहा, “पंजाब, राजस्थान और हरियाणा सहित अन्य राज्यों के बीच सभी जल समझौतों की उसी तरह से समीक्षा की जानी चाहिए।”

उन्होंने कहा कि यह नदी तट सिद्धांत के अनुसार किया जाना चाहिए, जिसके तहत नदी जिस राज्य से होकर बहती है, उसका उस पर अधिकार होता है। एसवाईएल समझौते को भी रद्द किया जाना चाहिए, क्योंकि पंजाब को पहले तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नदी का पानी हरियाणा को सौंपने के लिए मजबूर किया था।

सांसद ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि पंजाबियों को अपनी नदी के पानी की सुरक्षा के लिए आम आदमी पार्टी सरकार पर भरोसा नहीं है। उन्होंने कहा, “आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऑन रिकॉर्ड मांग की है कि पंजाब की नदियों का पानी हरियाणा और दिल्ली के लिए छोड़ा जाए।”

उन्होंने यह भी मांग की कि तीन कृषि कानूनों के विरोध में चले किसान आंदोलन के बाद गठित एमएसपी समिति को फिर से गठित किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया था कि एमएसपी समिति में किसान आंदोलन के प्रतिनिधियों के अलावा प्रमुख किसान और विशेषज्ञ शामिल होंगे। लेकिन मौजूदा कमेटी सरकारी प्रतिनिधियों से भरी हुई है और इसमें पंजाब सरकार या पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) का प्रतिनिधित्व शून्य है।

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