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पंजाब में कम मतदान के रहे ये प्रमुख पांच कारण, राजनीतिक पार्टियों का गणित बिगड़ा

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Punjab Election 2022 पंजाब विधानसभा चुनाव में पिछली बार के मुकाबले इस बार मतदान प्रतिशत कम रहा। इससे राजनीतिक दलों का चुनावी गणित बिगड़ गया है। राजनीतिक विश्लेषक राज्य में कम मतदान के पांच प्रमुख कारण मानते हैं।

इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। Punjab Election 2022: पिछले दो विधानसभा चुनाव में करीब 78 प्रतिशत मतदान करने वाले पंजाबी इस बार करीब 72 प्रतिशत (71.95 प्रतिशत) मतदान ही कर पाए। ग्रामीण सीटों पर जमकर वोटिंग हुई, लेकिन शहरी सीटों पर ऐसा संभव नहीं हो सका। राजनीतिक विश्लेषकों का इस पर अपना-अपना तर्क है।

ढ़ाई दशकों से ज्यादा पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले पंजाब यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर आशुतोष कुमार मतदान कम होने के पीछे पांच कारण मानते हैं। उनके अनुसार झूठे वादों से निराशा, कद्दावर नेताओं की कमी और युवाओं का पलायन मतदान कम होने का बड़ा कारण रहा। कुछ सीटों पर हुए भारी मतदान को लेकर कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे इस बार लोगों ने पूरे राज्य को एक यूनिट न मानकर प्रत्याशी को देख व विधानसभा क्षेत्र के आधार पर वोट किया।

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झूठे वादे पर भरोसा नहीं

पार्टियों की तरफ से किए जा रहे झूठे वादों पर भरोसा नहीं किया। उन वादों के पीछे लगकर मतदान करने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। शहरी मतदाता इस बार झांसे में नहीं आए।

कोई लहर नहीं

लोगों में राजनीतिक पार्टियों की कारगुजारी को लेकर निराशा थी। पंजाब में पिछली बार की तरह कोई लहर भी नहीं थी। पिछले चुनाव में आम आदमी पाटी के प्रति जो लहर थी, वह वापस उन्हीं पर आ पड़ी।

कद्दावर नेताओं की कमी

इस बार कोई कद्दावर नेता लीड नहीं कर रहा था। पिछले चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह बड़ा चेहरा थे जिनको लोगों ने बड़े स्तर पर मौका दिया। इस बार वह भी मात्र 34 सीटों पर लड़ने के कारण लीड करने में असफल रहे। उनके अलावा कोई बड़े कद का नेता ऐसा नजर नहीं आया जो वोटों को मोबलाइज कर पाता।

जाति फैक्टर का प्रभाव कम पड़ा

कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी के अनुसूचित जाति के होने के कारण उनके नाम पर दांव खेला, लेकिन वोट प्रतिशत देखकर नहीं लग रहा कि दलित उनके प्रति कंसोलिडेट हुए हैं। अगर ऐसा होता तो निश्चित रूप से वोट प्रतिशत काफी बढ़ता।

एनआरआइ भी नहीं आए

युवाओं का विदेश में पलायन भी एक कारण रहा। बहुत से वोटर ऐसे हैं जिनका वोट यहां बना है लेकिन वह इस समय विदेश में हैं। एनआरआइ वोटरों का हतोत्साहित रहना भी एक कारण है। पिछली बार की तरह एनआरअइ वोट करने नहीं आए।

बदलाव के लिए वोट नहीं किया गया : डा. प्रमोद

कई सालों से चुनावी विश्लेषण करने वाले इंस्टीट्यूट आफ डेवलपमेंट एंड कम्यूनिकेशन (आइडीसी) के डायरेक्टर डा. प्रमोद कुमार अलग राय रखते हैं। उनका मानना है कि इस बार वोटर ने बदलाव के लिए वोट नहीं किया। जब वोटर बदलाव के मूड में होता है तो ज्यादा मतदान होता है और कम मतदान सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाता है। उन्होंने बताया कि 19 से 20 सीटें ऐसी हैं जो वोट प्रतिशत बहुत गिरा है इसका अर्थ है कि लोग बदलाव के मूड में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी ने युवाओं के विदेश में हो रहे पलायन को लेकर अपना पक्ष रखा कि उन्हें विदेश में जाने से रोका जाए और यहां उनके लिए संसाधन पैदा किए जाएंगे। पंजाब के युवा ने इस दलील पर निराशा व्यक्त की दिखाई पड़ती है। लगता है कि पार्टी को पंजाब की पहचान नहीं है। पंजाबी तो 1875 से ही अपने आपको एक्सप्लोर करने के लिए विदेश में जा रहे हैं। उन्हें यहां रोकने की बात करने को लोगों ने नेगेटिव सेंस में लिया गया।

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