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हनुमान सिंह ने तलवार से काटा था अंग्रेज अफसर को; वारंट के आधार पर ने तैयार करवाई पहली तस्वीर

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रायपुर: 1857 की महान क्रांति की चिंगारी भड़काने वाले ब्रिटिश सिपाही मंगल पांडे थे। बैरकपुर में उन्होंने ब्रिटिश अफसर पर गोली चलाई और उन पर तलवार हमला किया था। क्रांति की आग ठीक एक साल बाद रायपुर में भी धधकी। देश को आजाद कराने की लौ एक और अंग्रेज सिपाही के मन में जल रही थी।पहली बार तब के सेंट्रल प्रोविंस और आज छत्तीसगढ़ के रायपुर इलाके में किसी ब्रिटिश सैनिक ने सैन्य विद्रोह किया था। उस सैनिक ने अंग्रेज अफसर को अपनी तलवार से काट डाला। तब जिस भी अंग्रेज कर्मचारियों ने वो मंजर देखा खौफ में डूबा हुआ था। 6 घंटों तक ब्रिटिश हुकूमत की बुनियाद हिला देने वाले उस सैनिक का नाम था हनुमान सिंह जो रायपुर में पोस्टेड थे।रायपुर के पुलिस परेड ग्राउंड में हुई थी वो क्रांति।अंग्रेज अफसर की हत्या करने के बाद हनुमान सिंह फरार हो गए थे उनके 17 साथियों को अंग्रेजों ने पकड़कर फांसी की सजा दी। 18 जनवरी 1858 की रात आखिरी बार हनुमान सिंह को सैनिक छावनी में देखा गया था। उसके बाद से आज तक हनुमान सिंह कहां गए, कहां छिपे, कोई नहीं जानता। अंग्रेज भी उन्हें पकड़ नहीं पाए। माना जाता है कि छुपकर वह आजादी के आंदोलन में अपना योगदान देते रहे और अंग्रेजी सल्तनत के खिलाफ क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम देते रहे।स्कूल की किताब में हनुमान सिंह को बताया गया है मंगल पांडे की तरह।कहा जाता है छत्तीसगढ़ का मंगल पांडेछत्तीसगढ़ के CGPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी रायपुर के सैनिक विद्रोह से जुड़े सवाल किए जाते हैं। कक्षा 8वीं के सोशल साइंस के सिलेबस में भी हनुमान सिंह का जिक्र है । स्कूल की किताब में उन्हें छत्तीसगढ़ का मंगल पांडे बताया गया है। मगर आजादी के 75 साल बाद भी कोई नहीं जानता कि छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे सैनिक हनुमान सिंह दिखते कैसे थे ।आर्टिस्ट मंगेश ने तैयार किया लुक।प्रोफेशनल आर्टिस्ट ने तैयार किया फर्स्ट लुकरायपुर के पुलिस ग्राउंड में सैन्य विद्रोह की घटना को अंजाम देने वाले हनुमान सिंह दिखते कैसे हैं, इसे लेकर कोई तस्वीर या फोटो नहीं थी। पहली बार में इतिहासकार नाथ मिश्र की किताब में मौजूद हनुमान सिंह को लेकर जारी किए गए वारंट और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के परिजन आशीष सिंह की डिजिटल आर्काइव में मौजूद जानकारियों को जुटाया। अंग्रेजों के रिकॉर्ड में मौजूद हनुमान सिंह के हुलिए से संबंधित जानकारी के आधार पर खैरागढ़ यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र और दिल्ली के प्रोफेशनल आर्टिस्ट मंगेश ने हनुमान सिंह की पहली तस्वीर तैयार की।रायपुर के आशीष सिंह की डिजिटल आर्काइव में मौजूद अंग्रेजों के वारंट का विवरण।अंग्रेजों के वारंट में हनुमान सिंह का वर्णनरायपुर में सिडवेल नामक अंग्रेज अफसर की हत्या करने के बाद जब हनुमान सिंह फरार हुए तो उनकी तीसरी रेजिमेंट के इलियट नाम के अधिकारी ने एक जानकारी जारी की। तब अफसर हर बात की अपडेट नागपुर के सैन्य अधिकारियों को देते थे। नागपुर राजधानी की तरह था। हनुमान सिंह के फरार होने की जानकारी तमाम अंग्रेज सैन्य टुकड़ियों के पास भेजी गई । देशभर में हनुमान सिंह के खिलाफ सर्च ऑपरेशन चलाया गया ।कड़ा पहने लुक में हनुमान सिंह।वारंट में लिखा गया था कि हनुमान सिंह मैगजीन लश्कर के पद पर काम कर रहे थे, उनकी जाति राजपूत थी और ऊंचाई 5 फुट 4 इंच, शारीरिक गठन ठोस है, गोल चिकना चेहरा, बड़ी-बड़ी आंखें, ऊंचे माथे का, गर्दन दबी हुई, मूछें और तेज चाल वाला, दाहिने कलाई पर लोहे का सुनहरे रंग का कड़ा पहनता है, जोर-जोर से स्थिरता के साथ बोलता है । चलते समय नीचे देखता है, बांसवाड़ा राजस्थान का निवासी है।कहीं नहीं मिले हनुमान सिंहसेनानियों पर शोध करने वाले रायपुर के आशीष सिंह ने बताया कि हनुमान सिंह खुद भी सैनिक थे। वो जानते थे कि इस घटना को अंजाम देने के बाद उन्हें किस तरह से ढूंढा जाएगा। लिहाजा अपने छुपने के उपाय करते हुए वह अंडर ग्राउंड हुए। अंग्रेजों के रिकॉर्ड में उनके परिवार का राजस्थान के बांसवाड़ा में रहने का जिक्र मिलता है। हनुमान सिंह के खिलाफ इनाम घोषित हुआ था। अगर वह पकड़े जाते तो उन्हें फांसी की सजा दी जाती ।ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें ट्रेस करने की तमाम कोशिश की मगर हनुमान सिंह को कभी कोई ढूंढ नहीं पाया। आशीष सिंह कहते हैं कि घटना 1858 में हुई थी, आज हम 2022 में जी रहे हैं इतने वक्त में हनुमान सिंह से जुड़ी बहुत सी बातें बदल गई होंगी । उनके परिजनों का भी कोई साक्ष्य नहीं मिला, हो सकता है वह भी हनुमान सिंह के साथ अंडरग्राउंड हुए हों। बहुत मुमकिन है कि हनुमान सिंह पहचान बदलकर, नाम बदलकर या हुलिया बदलकर रह रहे हों। रायपुर से जाने के बाद उनकी कोई जानकारी किसी के हाथ नहीं लगी।अंग्रेजों ने तैयार की थी घटना की रिपोर्ट1858 में रायपुर के कार्यवाहक डिप्टी कमिश्नर रहे बीजे आशे ने एक रिपोर्ट तैयार की थी। उन्होंने लिखा था कि सार्जेंट मेजर सिडवेल की हनुमान सिंह और उसके साथियों ने हत्या की। आशे ने बताया कि वह लेफ्टिनेंट इलियट (हनुमान सिंह के सीनियर अफसर) के घर पर गए थे। रिपोर्ट में लिखा गया है कि जब हनुमान सिंह ने अंग्रेज अफसर की हत्या की तब इलियट वहीं मौजूद थे । इलियट पर भी हमला करने की के दौरान बाहर से विद्रोही सैनिक अंदर उनके कमरे में आने की कोशिश कर रहे थे, मगर वह आ नहीं पाए। इस बीच इलियट ने घुड़सवार सुरक्षाकर्मियों को अलर्ट कर दिया। अफसरों के नौकरों ने हनुमान सिंह को तलवार लेकर भागते हुए देखा। रिपोर्ट में अफसर ने लिखा है कि लेफ्टिनेंट इलियट अगर नींद से ना जागे होते तो पूरी संभावना है कि उन्हें भी काट दिया गया होता।रायपुर के पुलिस ग्राउंड में यह हुआ था उस रातवीर नारायण सिंह के बलिदान ने रायपुर के सैनिकों में अंग्रेजी शासन के प्रति घृणा और आक्रोश को तीव्र कर दिया। हनुमान सिंह की योजना थी कि रायपुर के अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर छत्तीसगढ़ में अंग्रेज शासन को पंगु बना दिया जाए। 18 जनवरी 1858 को सारजेंट मेजर सिडवेल की हत्या की थी। इसके बाद उन्होंने अपने साथियों के साथ तोपखाने पर कब्जा कर लिया। सिडवेल की हत्या और छावनी में सैन्य विद्रोह की सूचना अंग्रेज अधिकारियों को मिल गई। 6 घंटे तक हनुमान सिंह पर कोई काबू नहीं पा सका।मगर बाद में लेफ्टिनेंट रॉट और लेफ्टिनेंट सी. एच. लूसी स्मिथ ने अन्य सैनिकों के सहयोग से विद्रोह पर काबू पा लिया। हनुमान सिंह के साथ मात्र 17 सैनिक ही थे, लेकिन वह लगातार छह घंटों तक लड़ते रहे। अधिक देर टिकना असंभव था। 22 जनवरी 1858 को हनुमान सिंह का साथ देने वाले इन क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई। इनके नाम हैं: गाजी खान, अब्दुल हयात, मल्लू, शिवनारायण, पन्नालाल, मतादीन, ठाकुर सिंह, बली दुबे, लल्लासिंह, बुध्दू सिंह, परमानन्द, शोभाराम, दुर्गा प्रसाद, नजर मोहम्मद, देवीदान, जय गोविन्द।

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