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नोबल विजेता और म्यांमार की जन नेता आंग सान सू की का राजनीतिक सफर, भारत में भी बीता कुछ पल

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बैंकाक। म्यांमार की एक अदालत ने अपदस्थ नागरिक नेता आंग सान सू की को सेना के खिलाफ असंतोष भड़काने और कोविड के नियमों का उल्लंघन करने के लिए चार साल जेल की सजा सुनाई गई है। म्यांमार की सेना द्वारा आंग सान सू की के खिलाफ लाए गए एक दर्जन मामलों में यह पहला फैसला है। इससे पहले, 1 फरवरी को म्यांमार की सेना ने देश पर कब्जा करने के बाद सू की को हिरासत में ले लिया गया था। म्यांमार की अपदस्थ नेता आंग सान सू की देश के स्वतंत्रता नायक जनरल आंग सान की बेटी हैं, जिनकी 1947 में हत्या कर दी गई थी।

सू की 1960 में अपनी मां के साथ नई दिल्ली आ गई थीं। उनकी मां को भारत में राजदूत नियुक्त किया गया था। इसके बाद उन्होंने अपना अधिकांश युवा जीवन संयुक्त राज्य और इंग्लैंड में बिताया। जहां 1972 में उन्होंने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हिमालयन स्टडीज के ब्रिटिश स्कालर माइकल एरिस से शादी की। राजनीति में उनका करियर 1988 में शुरू हुआ था।

अप्रैल 1988 – सू की अपनी बीमार मां की देखभाल के लिए वापस घर लौट आईं। म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक जनरल ने विन के 26 साल के सैन्य शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।

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8 अगस्त 1988 – पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। सुरक्षा बलों ने गोलियां चलाईं, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए।

26 अगस्त 1988 – सू की ने यांगून में 1,50,000 की भीड़ के सामने अपने पहले सार्वजनिक भाषण में लोकतंत्र का आह्वान किया।

27 सितंबर 1988 – सू की ने एक विपक्षी पार्टी, नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी को बनाने में मदद की।

20 जुलाई, 1989 – सू की को नजरबंद कर दिया गया, जो अगले 15 वर्षों तक जारी रहा।

27 मई, 1990 – नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी ने चुनावों में भारी जीत हासिल की, लेकिन सैन्य सरकार ने चुनावों को रद्द कर दिया और सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया।

14 अक्टूबर, 1991 – सू की को लोकतंत्र के लिए उनके अहिंसक संघर्ष के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

27 मार्च, 1999 – सू की के पति माइकल एरिस का इंग्लैंड में कैंसर से निधन हो गया। दंपति ने 1995 से एक-दूसरे को नहीं देखा था क्योंकि उन्हें म्यांमार का वीजा नहीं दिया जा रहा था।

30 मई, 2003 – उत्तरी म्यांमार के एक राजनीतिक दौरे के दौरान सू की के दल पर घात लगाकर हमला किया गया। जिसमें उनके कई समर्थक मारे गए।

अगस्त 2007 – ईंधन की कीमतों पर विरोध 1988 के बाद से सबसे बड़े लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों में बदल गया। इस आंदोलन को भगवा क्रांति के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसका नेतृत्व बौद्ध भिक्षुओं द्वारा किया जा रहा था।

7 नवंबर, 2010 – सू की की पार्टी द्वारा चुनावों का बहिष्कार करने के बाद सेना समर्थित यूनियन सालिडेरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी ने 20 वर्षों में पहला आम चुनाव जीता।

13 नवंबर 2010 – सू की को कई साल की नजरबंदी से रिहा किया गया।

1 अप्रैल, 2012 – सू की की पार्टी ने उप-चुनावों में भाग लिया और एक सीट पर जीत मिली।

8 नवंबर, 2015 – उनकी पार्टी ने आम चुनाव में व्यापक जीत हासिल की।

1 फरवरी, 2016 – सू की की पार्टी के बहुमत के साथ संसद बुलाई। मार्च में सरकार बनी। संविधान में प्रावधान की वजह से सू की राष्ट्रपति नहीं बन सकीं, लेकिन सरकार का नेतृत्व करने के लिए उन्हें राज्य सलाहकार का पद दिया गया।

25 अगस्त, 2017 – म्यांमार के मुस्लिम रोहिंग्या अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले विद्रोहियों ने पश्चिमी राज्य रखाइन में सुरक्षा बलों पर हमला किया, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए। सेना ने बड़े पैमाने एक क्रूर आतंकवाद विरोधी अभियान के साथ इसका जवाब दिया। बांग्लादेश में 7,30,000 से अधिक रोहिंग्याओं को खदेड़ दिया गया।

11 दिसंबर, 2019 – सू की ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में प्रारंभिक कानूनी कार्यवाही में सेना की कार्रवाई का बचाव किया ।

8 नवंबर, 2020 – सू की की पार्टी ने 2015 के चुनाव की तुलना में संसदीय चुनावों में भारी बहुमत से जीत हासिल की।

1 फरवरी, 2021 – संसद का नया सत्र बुलाने से ठीक पहले सू की और पार्टी के शीर्ष और सरकारी सहयोगियों को सेना ने हिरासत में ले लिया। सेना ने चुनाव में व्यापक धोखाधड़ी का आरोप लगाया। सू की पर बाद में कई कथित अपराधों का आरोप लगाया गया और वह हिरासत में लिया गया।

6 दिसंबर 2021 – एक विशेष अदालत ने सू ची के खिलाफ पहला फैसला सुनाया, जिसमें उन्हें लोगों को उकसाने और कोरोना वायरस प्रतिबंधों का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया। उसे चार साल जेल की सजा सुनाई गई है।

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