पुलिस हिरासत में हुई कैदी की मौत को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सुनाया सख्त फैसला-SSP को हटाने के दिए आदेश।
हलद्वानी में पुलिस हिरासत में हुई कैदी की मौत को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सख्त फैसला लिया है. हाईकोर्ट ने मौत की जांच सीबीआई (CBI) को सौंपने का आदेश दिया है. साथ ही इस पूरे मामले में शामिल पुलिसकर्मी और बंदी रक्षकों का दूसरे जिले में ट्रांसफर करने के भी आदेश दिए हैं. हाईकोर्ट के जस्टिस रवींद्र मैठाणी की सिंगल बेंच ने हिरासत में हुई मौत को बेहद गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच CBI से कराने के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही इस मामले में लापरवाही बरतने पर नैनीताल एसएसपी प्रीति प्रियदर्शिनी, हलद्वानी के तत्कालीन एसपी प्रमोद साह और हलद्वानी जेल के आरोपित 4 बंदी रक्षकों के तबादले करने का भी आदेश दिया है. उत्तराखंड में ये पहली बार हुआ है जब हाईकोर्ट ने SSP को हटाने के आदेश दिए हैं. SSP को इस पूरे मामले में लापरवाही बरतने और केस दर्ज नहीं करने पर हाईकोर्ट ने हटाने के आदेश दिए हैं.
क्या है मामला? दरअसल, एक नाबालिग से छेड़छाड़, गाली-गलौज और मारपीट के आरोप में पुलिस ने प्रवेश कुमार नाम के शख्स को 4 मार्च को गिरफ्तार किया था. अगले दिन मेडिकल जांच के बाद उसे जेल भेज दिया गया जहाँ संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. प्रवेश कुमार की मौत के बाद उसकी पत्नी ने जेल प्रशासन समेत पुलिस के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए जांच की मांग की थी.
डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी की मदद से मामले में FIR दर्ज कराने की मांग की गई, लेकिन नैनीताल की एसएसपी ने FIR दर्ज करने से ये कहते हुए मना कर दिया कि अभी मजिस्ट्रेट जांच चल रही है. मजिस्ट्रेट सुनवाई के दौरान सीजेएम ने एडिशनल सीजेएम रमेश सिंह को जांच के आदेश दिए. इसके बाद ये मामला हाईकोर्ट पहुंचा. मजिस्ट्रेट जांच के दौरान ही एसएसपी प्रीति प्रियदर्शिनी ने एसपी प्रमोद साह से भी जांच शुरू करवा दी, जबकि कानूनन ऐसा नहीं कराया जा सकता था, क्योंकि मजिस्ट्रेट जांच चल रही थी. एसपी प्रमोद साह ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि कैदी प्रवेश की मौत गिरने से हुई है, जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पैर के तलवों और जांघों में गंभीर चोट के निशान पाए गए थे
इससे पहले सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने SSP प्रीति प्रियदर्शनी को कड़ी फटकार लगाई थी. SSP पर केस दर्ज न करने और लापरवाही बरतने के इल्जाम लगे थे. हाईकोर्ट ने कहा था, ऐसा कौनसा कानून है जो मजिस्ट्रियल जांच के लंबित रहने के दौरान हिरासत में मौत के मामले में FIR दर्ज करने से रोकता है? SSP के जांच कराने पर भी हाईकोर्ट ने फटकारा था और पूछा था कि आपने किस कानून के तहत जांच करवा ली, जबकि इस मामले में पहले से ही मजिस्ट्रियल जांच चल रही थी. कोर्ट ने कहा था कि आपकी जांच को किस आधार पर वैध और उचित माना जाए क्योंकि पहले से ही मजिस्ट्रियल जांच चल रही थी और आपने इसी आधार पर FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया था. हाईकोर्ट ने पूछा था कि क्या सर्कल ऑफिसर ने जांच के दौरान उस डॉक्टर से बात की थी जिसने मृतक के चोट के निशान देखे थे.
इस पूरे मामले में SSP प्रियदर्शनी की भूमिका पर सवाल उठे थे और उन पर लापरवाही बरतने के इल्जाम भी लगे थे. ये भी पाया कि जांच को भटकाने के लिए चश्मदीदों के बयान न लेकर दूसरे लोगों के बयान दर्ज किए गए. इसलिए हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की जांच CBI से कराने के आदेश दिए हैं. साथ ही एसएसपी प्रीति प्रियदर्शिनी, एसपी प्रमोद साह और हलद्वानी जेल के 4 आरोपित बंदी रक्षकों के दूसरे जिलों में ट्रांसफर करने के आदेश दिए हैं. उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार किसी SSP को हटाने के आदेश दिए गए हैं।