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सृष्टि निर्माण को ब्रह्मा के मुख से निकला ‘ऊँ’ है सूर्यदेव का शरीर

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प्रस्तुति – अनमोल कुमार

जब ब्रह्माजी भगवान विष्णु के नाभि कमल से उत्पन्न होकर सत्य ज्ञान प्रवृत्त हेतु हजारों वर्षों तक ध्यान मग्न रहे और सृष्टि निर्माण हेतु पुन: सफल सिद्ध संकलन कर जो प्रथम शब्द उनके मुंह से उच्चरित हुआ वो महाशब्द ‘ऊँ’ था। यह ‘ऊँ’ शब्द ही ओंकार परब्रह्म है और यही भगवान सूर्यदेव का शरीर है। पुन: ब्रह्माजी के चारों मुखों से चार वेद आविर्भूत हुए और ओंकार के तेज से मिल कर जो स्वरूप उत्पन्न हुआ वही सूर्यदेव हैं। यह सूर्य स्वरूप ही सृष्टि निर्माण में सबसे पहले प्रकट हुआ इसलिए इसका नाम आदित्य पड़ा। सूर्यदेव का एक नाम सविता भी है; जिसका अर्थ होता है सृष्टि करने वाला। इसी से जगत उत्पन्न हुआ है और यही सनातन परमात्मा हैं नवग्रहों में सूर्य सर्वप्रमुख देवता हैं। इनकी दो भुजाएं हैं व कमल पुष्प आसन पर विराजमान हैं; उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित हैं। इनका वर्ण लाल है। सात घोड़ों वाले इनके रथ में एक ही चक्र है, जो संवत्सर कहलाते हैं। इस रथ में बारह अरे हैं जो 12 महीनों के प्रतीक हैं, ऋतुरूप छ: नेमियां और चौमासे को इंगित करती तीन नाभियां हैं। चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश इनके मुख्य अस्त्र हैं।
एक बार दैत्यों ने देवताओं को पराजित कर उनके सारे अधिकार छीन लिए। तब महर्षि कश्यप पत्नि देवमाता अदिति ने इस विपत्ति से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य की उपासना की, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने अदिति के गर्भ से अवतार लिया और दैत्यों को पराजित कर सनातन वेदमार्ग की स्थापना की। इसलिए भी इन्हें आदित्य कहा जाता है। भगवान सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा छ: वर्ष की होती है। इनकी प्रसन्नता के लिए इन्हें नित्य सूर्यार्घ्य देना चाहिए। इनका सामान्य मंत्र है- ‘ॐ घृणिं सूर्याय नम:’ इसका एक निश्चित संख्या में रोज जप करना चाहिए।

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